सम्माननीय साहित्य रसिको
पहली समस्या पूर्ति 'चौपाई' के अगले पड़ाव में इस बार दो रचनाधर्मियों को पढ़ते हैं|
भाई श्री मयंक अवस्थी जी:-
श्री मयंक अवस्थी जी रिजर्व बॅंक, नागपुर में कार्यरत हैं| शे'रो शायरी का बहुत ही जबरदस्त ज्ञान है आपको| और अब देखिए उन की अनुभवी लेखनी ने चौपाइयों के माध्यम से क्या जलवे बिखेरे हैं:-
निर्निमेष तुमको निहारती|
विरह –निशा तुमको पुकारती|
मेरी प्रणय –कथा है कोरी|
तुम चन्दा, मैं एक चकोरी|१|
खत भी तुमको भिजवाया पर|
शलभ, वर्तिका तक आया पर|
कब सुनते हो शून्य कथायें|
महाअशन में ये समिधायें|२|
तुम बादल मैं प्यासी धरती|
तुम बिन मैं सिँगार क्या करती|
बन जाते माथे पर कुमकुम|
कितने अच्छे लगते हो तुम|३|शलभ=पतंगा, वर्तिका=शम्मा, महाअशन=यज्ञ की विकराल अग्नि
भाई श्री रविकान्त पाण्डे जी:-
भाई रवि कांत पाण्डे जी हम से पहली बार जुड़े हैं| उन के बारे में मुझे विशेष जानकारी नहीं है, परंतु उनकी लेखनी स्वयँ ही उनका परिचय दे रही है:-
मौसम के हाथों दुत्कारे|पतझड़ के कष्टों के मारे|सुमन हृदय के जब मुरझाये|
तुम वसंत बनकर प्रिय आये|१|
नूतन किसलय तुमसे पाकर|
जीर्ण-शीर्ण सब पात हटाकर|
मस्ती में होकर मतवाली|
झूम रही उपवन की डाली|२|
लोग कहें घर दूर तुम्हारा|
किंतु नहीं मैने स्वीकारा|
दिल में मेरे बसते हो तुम|
कितने अच्छे लगते हो तुम|३|
भाई श्री मयंक जी और भाई श्री रवि कांत जी को बहुत बहुत बधाई इतने सुंदर्र और स-रस चौपाइयों को पढ़ने का सु-अवसर प्रदान करने के लिए|
इस आयोजन को गति प्रदान करने हेतु सभी साहित्य सेवियों से सविनय निवेदन है कि अपना अपना यथोचित योगदान अवश्य प्रदान करें| अपनी रचनाएँ navincchaturvedi@gmail.com पर भेजने की कृपा करें|
पहले समस्या पूर्ति के बार में और अधिक जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें:- समस्या पूर्ति: पहली समस्या पूर्ति - चौपाई
पहली समस्या पूर्ति 'चौपाई' के अगले पड़ाव में इस बार दो रचनाधर्मियों को पढ़ते हैं|
भाई श्री मयंक अवस्थी जी:-
श्री मयंक अवस्थी जी रिजर्व बॅंक, नागपुर में कार्यरत हैं| शे'रो शायरी का बहुत ही जबरदस्त ज्ञान है आपको| और अब देखिए उन की अनुभवी लेखनी ने चौपाइयों के माध्यम से क्या जलवे बिखेरे हैं:-
निर्निमेष तुमको निहारती|
विरह –निशा तुमको पुकारती|
मेरी प्रणय –कथा है कोरी|
तुम चन्दा, मैं एक चकोरी|१|
खत भी तुमको भिजवाया पर|
शलभ, वर्तिका तक आया पर|
कब सुनते हो शून्य कथायें|
महाअशन में ये समिधायें|२|
तुम बादल मैं प्यासी धरती|
तुम बिन मैं सिँगार क्या करती|
बन जाते माथे पर कुमकुम|
कितने अच्छे लगते हो तुम|३|शलभ=पतंगा, वर्तिका=शम्मा, महाअशन=यज्ञ की विकराल अग्नि
भाई श्री रविकान्त पाण्डे जी:-
भाई रवि कांत पाण्डे जी हम से पहली बार जुड़े हैं| उन के बारे में मुझे विशेष जानकारी नहीं है, परंतु उनकी लेखनी स्वयँ ही उनका परिचय दे रही है:-
मौसम के हाथों दुत्कारे|पतझड़ के कष्टों के मारे|सुमन हृदय के जब मुरझाये|
तुम वसंत बनकर प्रिय आये|१|
नूतन किसलय तुमसे पाकर|
जीर्ण-शीर्ण सब पात हटाकर|
मस्ती में होकर मतवाली|
झूम रही उपवन की डाली|२|
लोग कहें घर दूर तुम्हारा|
किंतु नहीं मैने स्वीकारा|
दिल में मेरे बसते हो तुम|
कितने अच्छे लगते हो तुम|३|
भाई श्री मयंक जी और भाई श्री रवि कांत जी को बहुत बहुत बधाई इतने सुंदर्र और स-रस चौपाइयों को पढ़ने का सु-अवसर प्रदान करने के लिए|
इस आयोजन को गति प्रदान करने हेतु सभी साहित्य सेवियों से सविनय निवेदन है कि अपना अपना यथोचित योगदान अवश्य प्रदान करें| अपनी रचनाएँ navincchaturvedi@gmail.com पर भेजने की कृपा करें|
पहले समस्या पूर्ति के बार में और अधिक जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें:- समस्या पूर्ति: पहली समस्या पूर्ति - चौपाई