tag:blogger.com,1999:blog-6860246720244916718.post6578040782413737080..comments2023-08-10T08:36:45.155-07:00Comments on समस्या पूर्ति मंच: चौथी समस्या पूर्ति - घनाक्षरी - गर्दभ कहे गधी से, आँख मूँद, कर जोड़www.navincchaturvedi.blogspot.comhttp://www.blogger.com/profile/07881796115131060758noreply@blogger.comBlogger24125tag:blogger.com,1999:blog-6860246720244916718.post-4022881506580058232011-06-21T19:02:50.741-07:002011-06-21T19:02:50.741-07:00आभार सलिल घनाक्षरी के आनंद वर्षं के लिए .आभार सलिल घनाक्षरी के आनंद वर्षं के लिए .virendra sharmahttps://www.blogger.com/profile/02192395730821008281noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6860246720244916718.post-91822348531326249022011-06-20T11:02:27.465-07:002011-06-20T11:02:27.465-07:00नवीन जी ने टिप्पणी में दिये छन्दों का उत्तम संशोधन...नवीन जी ने टिप्पणी में दिये छन्दों का उत्तम संशोधन कर पाठकों का मार्गदर्शन किया है. मूल छंद निम्न हैं .... इनमें ८-८-८-७ वर्णों पर यति (विराम) का पालन करने का प्रयास है... कितना सफल हुआ यह पाठक ही बता सकेंगे.<br /><br />घनाक्षरी छंद :<br /><br />राजनीति का अखाड़ा.....<br /><br />संजीव 'सलिल'<br /><br />*<br /><br />अपनी भी कहें कुछ, औरों की भी सुनें कुछ, बात-बात में न बात, अपनी चलाइए.<br /><br />कोई दूर जाए गर, कोई रूठ जाए गर, नेह-प्रेम बात कर, उसको मनाइए.<br /><br />बेटी हो, जमाई हो या, बेटा-बहू, नाती-पोते, भूल से भी भूलकर, शीश न चढ़ाइए.<br /><br />दूसरों से जैसा चाहें, वैसा व्यवहार करें, राजनीति का अखाड़ा, घर न बनाइए..<br /><br />*<br /><br />एक देश अपना है, माटी अपनी है एक, भिन्नता का भाव कोई, मन में न लाइए.<br /><br />भारत की, भारती की, आरती उतारकर, हथेली पे जान धरें, शीश भी चढ़ाइए..<br /><br />भाषा-भूषा, जात-पांत,वाद-पंथ कोई भी हो, हाथ मिला, गले मिलें, दूरियाँ मिटाइए.<br /><br />पक्ष या विपक्ष में हों, राष्ट्र-हित सर्वोपरि, राजनीति का अखाड़ा, घर न बनाइए..<br /><br />**<br /><br />सुख-दुःख, धूप-छाँव, आते-जाते जिंदगी में, डरिए न धैर्य धर, बढ़ते ही जाइये.<br /><br />संकटों में, कंटकों में, एक-एक पग रख, कठिनाई सीढ़ी पर, चढ़ते ही जाइये..<br /><br />रसलीन, रसनिधि, रसखान बनें आप, श्वास-श्वास महाकाव्य, पढ़ते ही जाइये.<br /><br />शारदा की सेवा करें, लक्ष्मी मैया! मेवा वरें, शक्ति साधना की राह, गढ़ते ही जाइये..<br /><br />***<br />रसलीन, रसनिधि, रसखान= हिंदी के ३ महाकवि<br />मुहावरे : बात में बात, अपनी चलाना, शीश चढ़ाना, आरती उतारना, हथेली पर जां धरना, शीश चढ़ाना, हाथ मिलाना, दूरियाँ मिटाना .दिव्य नर्मदा divya narmadahttps://www.blogger.com/profile/17701696754825195443noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6860246720244916718.post-41512553284376243882011-06-20T06:58:52.629-07:002011-06-20T06:58:52.629-07:00आचार्य जी की सारस्वत-साधना प्रणम्य है। छांदस विधाओ...आचार्य जी की सारस्वत-साधना प्रणम्य है। छांदस विधाओं के प्रति आपका समर्पित प्रयास अनुकरणीय है। रम्य रचनाओं ने मन मोह लिया।रविकांत पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/14687072907399296450noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6860246720244916718.post-86347480016166275552011-06-20T02:32:38.672-07:002011-06-20T02:32:38.672-07:00बहुत सुन्दर रचनाएं...आभारबहुत सुन्दर रचनाएं...आभारKailash Sharmahttps://www.blogger.com/profile/12461785093868952476noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6860246720244916718.post-43319569994309309762011-06-20T00:50:57.610-07:002011-06-20T00:50:57.610-07:00नवीनजी, अब मुझे समझ आ गया हैं। मैं पहले 16 और 31 द...नवीनजी, अब मुझे समझ आ गया हैं। मैं पहले 16 और 31 दोनों को अर्थात दोनों पंक्तियों के अन्त में गुरु अक्षर समझ रही थी।अजित गुप्ता का कोनाhttps://www.blogger.com/profile/02729879703297154634noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6860246720244916718.post-86354397829578217022011-06-19T22:16:19.825-07:002011-06-19T22:16:19.825-07:00आचार्य जी को पढ़ना सदा की तरह मन मोहक ही रहा | आपकी...आचार्य जी को पढ़ना सदा की तरह मन मोहक ही रहा | आपकी शब्दों पे पकड़ कमाल की है | जिस सुन्दरता से आप छंदों को अलंकृत करते हैं | क्या कहने !! बहुत आनंद आया <br />भाई साब !! <br />आपका प्रयास सराहनीय है | हिंदी छंदों के लिए आप बहुत अच्छा कर रहे हैं |<br />ब्लॉग पेज की नयी संरचना बहुत सुन्दर बन पड़ी है | आपको बधाई !!!Shekharnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6860246720244916718.post-3554642138485619152011-06-19T22:02:18.262-07:002011-06-19T22:02:18.262-07:00आचार्य जी की रचनाएँ बहुत अच्छी लगीं.....आचार्य जी की रचनाएँ बहुत अच्छी लगीं.....संजय भास्कर https://www.blogger.com/profile/08195795661130888170noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6860246720244916718.post-58102445084102451792011-06-19T21:19:21.287-07:002011-06-19T21:19:21.287-07:00@ अजित जी
आप की शंका है कि गुरु अक्षर जिस 'अं...@ अजित जी <br />आप की शंका है कि गुरु अक्षर जिस 'अंत' में आता है वह कौन सा 'अक्षर' होना चाहिए| यह 'इकत्तीसवाँ' [इस छन्द के केस में] अक्षर होता है| इसे एक और सरल उदाहरण से समझने का प्रयास करते हैं|<br /><br />पहले जमाने की किसी हजारा पुस्तक [जिस पुस्तक में विभिन्न कवियों के विभिन्न विषयों पर १००० कवित्त प्रकाशित होते थे, उसे हजारा कहते थे / हैं] में कवियों के कवित्त यूं लिखे जाते थे:-<br /><br />१ २ ३ ४ ५ ६ ७ ८ / ९ १० ११ १२ १३ १४ १५ १६ / १७ १८ १९ २० २१ २२ २३ २४ / २५ २६ २७ २८ २९ ३० ३१| यानी पेराग्राफ स्टाइल में| वैदिक ऋचाएँ भी ऐसे ही लिखी गई हैं|<br /><br />बाद के समय में कवियों के कवित्त यूं लिखे जाने लगे:-<br /><br />१ २ ३ ४ ५ ६ ७ ८ / ९ १० ११ १२ १३ १४ १५ १६ / <br />१७ १८ १९ २० २१ २२ २३ २४ / २५ २६ २७ २८ २९ ३० ३१|<br /><br />श्लोक, गीत, मुक्तक वगैरह इसी तरह लिखे गए हैं / लिखे जा रहे हैं| <br /><br />दोनों ही केस में १ से १६ तक के अक्षर फ़र्स्ट हाफ / पूर्वार्ध भाग हुए, तथा १७ से ३१ तक के अक्षर लेटर हाफ / उत्तरार्ध भाग हुए|<br /><br />३१ अक्षर वाला चरण ८ - १६ - २४ पर यति [यति अर्थात बोलते हुए क्षणिक रुकना] लेते हुए ३१ पर पूर्णता को प्राप्त होता है, लिहाजा अपेक्षित गुरु / दीर्घ / २ मात्रा वाला अक्षर भी यहीं आना चाहिए|<br /><br />आशा है शंका का समाधान हो गया है| फिर भी यदि, कोई शंका रह जाती है तो मित्र गण निस्संदेह यहाँ पर पूछ सकते हैं, या तो फिर navincchaturvedi@gmail.com पर मेल भेजने की कृपा करें| संकोच रत्ती भर भी न करें|<br /><br />जो सदस्य नए हैं, वो इस वार्तालाप से कतई हतोत्साहित न हों, छंदों की बात हो या किसी और विधा की, हमें प्रयास तो करना ही होता है| आज यहाँ हम लोग भी जो इन बातों को बतिया रहे हैं, माँ के पेट से सीख के थोड़े ही ना आए हैं, अभ्यास करते करते ही सीखे हैं| तो कृपया अपने अपने सत्प्रयास जारी रखें|<br /><br />जहाँ तक मुझे याद आ रहा है, अजित जी, आप दोहा कक्षाओं से भी जुड़ी रही हैं| आप के रूप में एक और सक्रिय सहयोगी पाना इस आयोजन की उपलब्धि रही| आप का सक्रिय सहयोग जारी रखिएगा|www.navincchaturvedi.blogspot.comhttps://www.blogger.com/profile/07881796115131060758noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6860246720244916718.post-77923011158832037352011-06-19T18:09:05.616-07:002011-06-19T18:09:05.616-07:00आचार्य जी की रचनाएँ बहुत अच्छी लगीं |त्रुटि सुधार ...आचार्य जी की रचनाएँ बहुत अच्छी लगीं |त्रुटि सुधार के लिए दी गई रचना में त्रुटियाँ मैं सरलता से अब खोज पाई |अथ अब लग रहा है कि यह छदंऔर इसके नियम पूर्ण रूप से समझ गई हूँ |<br />आशाAsha Lata Saxenahttps://www.blogger.com/profile/16407569651427462917noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6860246720244916718.post-602914028437103472011-06-19T08:56:41.885-07:002011-06-19T08:56:41.885-07:00इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.Divya Narmadahttps://www.blogger.com/profile/13664031006179956497noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6860246720244916718.post-30212946021675471502011-06-19T05:28:52.530-07:002011-06-19T05:28:52.530-07:00नवीन जी कृपया इन पंक्तियों को समझाए -
शहनाई गूँज ...नवीन जी कृपया इन पंक्तियों को समझाए - <br />शहनाई गूँज रही, नाच रहा मन मोर,<br /><br />लात मार दूर करें, दशमुख सा -अनुज<br /><br />ऐसी कई पंक्तियां है। प्रथम चरण के आखिरी वर्ण को देखें। या शायद दूसरे चरण में ही गुरु का विधान हो?अजित गुप्ता का कोनाhttps://www.blogger.com/profile/02729879703297154634noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6860246720244916718.post-2386632414509264692011-06-19T03:42:08.346-07:002011-06-19T03:42:08.346-07:00[विशेष:- यह टिप्पणी आचार्य जी के कहने पर दी गई है|...[विशेष:- यह टिप्पणी आचार्य जी के कहने पर दी गई है| आचार्य जी चाहते हैं कि लोग देखें और सीखें कि गलतियाँ कहाँ होती हैं और उन्हें कैसे सुधारा जाता है]<br /><br /><br />सलिल जी के टिप्पणी वाले छंदों में कुछ त्रुटियों पर ध्यान देना चाहिए:-<br /><br />[1]<br />बेटी हो, बहू हो, या हो बेटा या जमाई ही, - पूर्वार्ध भाग होने के कारण यहाँ कुल 16 अक्षर होने चाहिए| पर कवि ने यहाँ 1 अक्षर कम लिया है| सही यूं होना चाहिए :-<br />बेटी हो, बहू हो, या हो बेटा या जमाई ही हो <br /><br />[2]<br />'सलिल' जैसा चाहें आप, वैसा व्यवहार करें, - पूर्वार्ध भाग होने के कारण यहाँ 16 अक्षर होने चाहिए| पर यहाँ 1 अक्षर ज्यादा है| सही यूँ होना चाहिए:- <br />'सलिल' जो चाहें आप, वैसा व्यवहार करें<br /><br />[3]<br />शारदा की सेवा करें, लक्ष्मी की मेवा वरें, - पूर्वार्ध भाग होने के कारण यहाँ 16 अक्षरों की आवश्यकता है| परंतु कवि ने 1 अक्षर कम लिया है| दो सुधार प्रस्तावित हैं - या तो लक्ष्मी को यूं लिखना और बोलना पढ़ेगा - 'लक्षमी'<br />या फिर यूँ हो :-<br />शारदा की सेवा करें, लक्ष्मी जी की मेवा वरें<br /><br />[4]<br />टिप्पणी के आखिरी वाले छन्द में तुकांत दोष भी है| पहले तीन चरणों में कवि ने लिया है - 'बढ़ते ही' / 'चढ़ते ही' / 'पढ़ते ही' - पर अंत में 'नित्य करे' ले लिया है| ये नीतिगत नहीं है| नीति अनुसार यहाँ होना चाहिए - कढ़ते ही / लड़ते ही / मढ़ते ही इत्यादि|www.navincchaturvedi.blogspot.comhttps://www.blogger.com/profile/07881796115131060758noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6860246720244916718.post-4583674903861648932011-06-19T03:36:38.106-07:002011-06-19T03:36:38.106-07:00@अजित जी :-
प्रस्तुत आयोजन वाली घनाक्षरी 31 अक्षर...@अजित जी :-<br /><br />प्रस्तुत आयोजन वाली घनाक्षरी 31 अक्षर वाली है जिसे 8+8+8+7 = 31 यूं चार भागों में बाँटा गया है| यहाँ आखिरी अक्षर गुरु है| सलिल जी के जिस छंद में लघु आ रहा हो, उस का उल्लेख करें|<br /><br />हालांकि कुछ कवियों ने [सलिल जी ने भी टिप्पणी वाले छंदों में] 16+15 विधान को भी अपनाया है| इस केस में भी आखिरी अक्षर गुरु ही है|<br /><br />जिन घनाक्षरियों में अंत में लघु आता है, वो समान्यत: 32 अक्षर वाले कवित्त होते हैं|<br /><br />एक बार फिर से दोहराने की जरूरत महसूस हो रही है कि घनाक्षरी / कवित्तों के कई प्रकार हैं, फिलहाल हम यहाँ गुरु अक्षर के साथ समाप्त होने वाले 31 अक्षरों वाले [8+8+8+7=31 को प्राथमिलकता] छंद पर काम कर रहे हैं| <br /><br />एक बार में एक छन्द का तरीका सहज और सुगम्य रहेगा|<br /><br />आशा है आप की शंका का समाधान हो गया होगा|www.navincchaturvedi.blogspot.comhttps://www.blogger.com/profile/07881796115131060758noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6860246720244916718.post-90058257394978604152011-06-19T03:01:12.925-07:002011-06-19T03:01:12.925-07:00आचार्य जी के सभी छंद बेजोड़ है।
इन छंदों में शब्दो...आचार्य जी के सभी छंद बेजोड़ है।<br />इन छंदों में शब्दों की जादूगरी देखते ही बन रही है।महेन्द्र वर्माhttps://www.blogger.com/profile/03223817246093814433noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6860246720244916718.post-25817957805266751372011-06-18T23:58:04.749-07:002011-06-18T23:58:04.749-07:00मेरी टिप्पणी में
मेरी नादानी दिख जाएगी |
ये वो कल...मेरी टिप्पणी में <br />मेरी नादानी दिख जाएगी |<br />ये वो कला है<br />जिसे सीखने समझने में <br />नानी याद आ जायेगी ||<br /><br />ये नौनिहाल <br />आता रहेगा ननिहालरविकर https://www.blogger.com/profile/00288028073010827898noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6860246720244916718.post-78429334166981414032011-06-18T23:42:52.521-07:002011-06-18T23:42:52.521-07:00सलिल जी के सतत प्रयास को अक्सर हर मंच पे देखा जा स...सलिल जी के सतत प्रयास को अक्सर हर मंच पे देखा जा सकता है .. हिन्दी और हिन्दी से जुड़े किसी ही कार्य में आचार्य जी की उपस्थिति पूर्णता दे देती है ... आनद ले रहा हूँ आज इतने लाजवाब छंदों का ...दिगम्बर नासवाhttps://www.blogger.com/profile/11793607017463281505noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6860246720244916718.post-19361265416310812042011-06-18T23:31:13.845-07:002011-06-18T23:31:13.845-07:00आद० सलिल जी के चारों छंद भाव और शिल्प सौन्दर्य म...आद० सलिल जी के चारों छंद भाव और शिल्प सौन्दर्य में बेजोड़ हैं .....मनमोहक हैं |<br />नवीन जी , आपका यह पुनीत प्रयास हिंदी साहित्य को बहुत कुछ दे रहा है ...सुरेन्द्र सिंह " झंझट "https://www.blogger.com/profile/04294556208251978105noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6860246720244916718.post-55888446215286051872011-06-18T21:51:15.374-07:002011-06-18T21:51:15.374-07:00वाह! आनन्द आ गया सलिल जी को पढ़कर.....
ब्लॉग के फ...वाह! आनन्द आ गया सलिल जी को पढ़कर.....<br /><br />ब्लॉग के फॉर्मेट का बदलाव मनभावन है, बधाई आपको.Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6860246720244916718.post-77682360604785376052011-06-18T21:25:17.889-07:002011-06-18T21:25:17.889-07:00aapko aur slil ji donon ko bdhaaiaapko aur slil ji donon ko bdhaaiदिलबागसिंह विर्कhttps://www.blogger.com/profile/11756513024249884803noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6860246720244916718.post-30566008438506933142011-06-18T20:00:26.916-07:002011-06-18T20:00:26.916-07:00सर्वप्रथम आपका नवीन फार्मेट बहुत अच्छा लगा, क्य...सर्वप्रथम आपका नवीन फार्मेट बहुत अच्छा लगा, क्योंकि हमारा नाम भी यहाँ दिखायी दे रहा है। आपने कक्षा के विद्यार्थियों की उपस्थिति पंजिका बना दी हो जैसे। <br />सलिल जी की रचना को भी और उनके व्यक्तित्व को भी सादर नमन। मुझे एक बात पूछनी है - आपने घनाक्षरी छंद में लिखा था कि प्रत्येक चरण के अन्त में गुरु आएगा, साथ में यह भी लिखा था कि लघु भी आता है। सलिल जी ने लघु प्रयोग किया है। कृपया स्पष्ट करें।अजित गुप्ता का कोनाhttps://www.blogger.com/profile/02729879703297154634noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6860246720244916718.post-76261529641098797492011-06-18T13:35:50.325-07:002011-06-18T13:35:50.325-07:00नवीन जी!
वन्देमातरम.
आपने इस चिट्ठे को नयनाभिराम औ...नवीन जी!<br />वन्देमातरम.<br />आपने इस चिट्ठे को नयनाभिराम और अधिक उपयोगी बना दिया बधाई.<br />प्रस्तुत चारों छन्दों का सम्यक विश्लेषण कर आपने पाठकों का काम सरल कर दिया है. आभार. <br />साधना जी! यहाँ ३ नहीं ४ छंद प्रस्तुत किये हैं. आपको तथा सज्जन जी को धन्यवाद.<br />आप तीनों को समर्पित ३ अप्रकाशित घनाक्षरियाँ:<br />अपनी भी कहें कुछ, औरों की भी सुनें कुछ,<br />बात-बात में न बात, अपनी चलाइए.<br />कोई दूर जाये गर, कोई रूठ जाये गर,<br />नेह-प्रेम बात कर उसको मनाइए.<br />बेटी हो, बहू हो, या हो बेटा या जमाई ही,<br />भूल से भी भूलकर, शीश न चढ़ाइए.<br />'सलिल' जैसा चाहें आप, वैसा व्यवहार करें,<br />राजनीति का अखाड़ा घर न बनाइए..<br />*<br />एक देश अपना है, माटी अपनी है एक,<br />भिन्नता का भाव कोई मन में न लाइए.<br />भारत की, भारती की,आरती उतारकर,<br />हथेली पे जान धरें, शीश भी चढ़ाइए..<br />भाषा-भूषा, जात-पांत,वाद-पंथ कोई भी हो,<br />हाथ मिला, गले मिलें, दूरियाँ मिटाइए.<br />पक्ष या विपक्ष में हों, राष्ट्र-हित सर्वोपरि,<br />राजनीति का अखाड़ा घर न बनाइए..<br />**<br />सुख-दुःख, धूप-छाँव, आते-जाते जिंदगी में,<br />डरिए न धैर्य धर, बढ़ते ही जाइये.<br />संकटों में, कंटकों में, एक-एक पग रख,<br />कठिनाई सीढ़ी पर, चढ़ते ही जाइये..<br />रसलीन, रसनिधि, रसखान बनें आप,<br />श्वास-श्वास महाकाव्य, पढ़ते ही जाइये.<br />शारदा की सेवा करें, लक्ष्मी की मेवा वरें,<br />शक्ति-युक्ति साधना भी, नित्य करे जाइये..<br />***Divya Narmadahttps://www.blogger.com/profile/13664031006179956497noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6860246720244916718.post-85108748600888049772011-06-18T13:31:45.212-07:002011-06-18T13:31:45.212-07:00इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.Divya Narmadahttps://www.blogger.com/profile/13664031006179956497noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6860246720244916718.post-25055618606251287292011-06-18T10:51:12.451-07:002011-06-18T10:51:12.451-07:00सलिल जी शब्दों के जादूगर हैं और छंदों के बाजीगर। क...सलिल जी शब्दों के जादूगर हैं और छंदों के बाजीगर। कितनी भी प्रशंसा की जाए इन छंदों की कम पड़ जाएगी। सलिल जी को हार्दिक बधाई।‘सज्जन’ धर्मेन्द्रhttps://www.blogger.com/profile/02517720156886823390noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6860246720244916718.post-36982314061517911552011-06-18T10:11:23.232-07:002011-06-18T10:11:23.232-07:00सलिल जी की रचनाओं ने मन एवं मस्तिष्क दोनों को ही च...सलिल जी की रचनाओं ने मन एवं मस्तिष्क दोनों को ही चमत्कृत कर दिया है ! छंद विन्यास पर उनका अधिकार देखते ही बनता है ! तीनों रचनाएं एक से बढ़ कर एक हैं ! उन्हें हार्दिक बधाई एवं अभिनन्दन !Sadhana Vaidhttps://www.blogger.com/profile/09242428126153386601noreply@blogger.com