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गुरुवार, 23 दिसंबर 2010

पहली समस्या पूर्ति - चौपाई

हम में से कई ने अपने बचपन की पाठ्य पुस्तकों में यह कविता पढ़ी होगी:

उठो लाल अब आँखें खोलो|
पानी लाई हूँ, मुँह धो लो|
बीती रात, कमल दल फूले|
उन के ऊपर भँवरे झूले|

हम में से ज़्यादातर ने रामायण और हनुमान चालीसा भी ज़रूर पढ़ी है| आइए देखें कुछ पंक्तियाँ:-

मंगल भवन अमंगल हारी|
द्रवहु सू दसरथ अजर बिहारी||

जय हनुमान ज्ञान गुण सागर|
जय कपीश तिहुँ लोक उजागर||

ऊपर की पंक्तियों को अगर ध्यान से पढ़ा जाए, तो आप पाएँगे ये चौपाई 'छंद' हैं|

चौपाई छंद

सबसे सरल छंद है ये| चार चरणों में बँटा होता है ये| प्रत्येक चरण में १६ मात्राएँ होती हैं| पहले-दूसरे चरणों के अंत में समान शब्द आते हैं, और तीसरे-चौथे चरणों के अंत में समान शब्द आते हैं| यदि कवि चारों के चारों चरणों में समान शब्द लेना चाहे, तो सुंदरता और भी बढ़ जाती है| चरणांत में तगण और जगण वर्जित|

उदाहरण देखिए:-

उठो लाल अब आँखें खोलो
१२ २१ ११ २२ २२ = १६ मात्राएँ

जय हनुमान ज्ञान गुण सागर
११ ११२१ २१ ११ २११ = १६ मात्राएँ


देखा आपने कितना आसान है ये छंद| तो चलो इस मंच पर की सबसे पहली 'समस्या पूर्ति' शुरू करते हैं| यह समस्या पूर्ति लोगों में रुझान जागने तक जारी रहेगी| उस के बाद सदस्यों / रचनाकारों के उत्साह को देखते हुए दूसरी पॅक्ति की घोषणा की जाएगी|


पहली समस्या पूर्ति की पंक्ति है:-

"कितने अच्छे लगते हो तुम|"

आपको ऊपर दी गयी पंक्ति को ध्यान में रखते हुए कम से कम चार चरणों वाली ३ चौपाई लिख कर navincchaturvedi@gmailcom पर भेजनी हैं, जिन्हें समय समय पर यहाँ मंच पर प्रकाशित किया जाएगा| रचनाकारों के समझने हेतु एक प्रस्तुति यहाँ दी जा रही है?:-

सब के सब अपने लगते हैं| पर जब तब हम को ठगते हैं|
सबकी बातें मोहित करतीं| आँखों में आँसू भी भरतीं|१|

अपने अपने कारण सबके| कोई न रहना चाहे दब के|
विजय पताका लहराते हैं| अपना दम खम दिखलाते हैं|२|

इन सब में तुम अलग थलग हो| उच्च गगन के मुक्त विहग हो|
सचमुच सच्चे लगते हो तुम| कितने अच्छे लगते हो तुम|३|

'कितने अच्छे लगते हो तुम', ये हिस्सा प्रस्तुति के किसी भी चरण में लेने के लिए स्वतंत्र हैं सभी रचनाकार|

आप सभी अपनी अपनी रचनाएँ navincchaturvedi@gmail.com पर भेजने की कृपा करें

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