'अनु' तथा 'प्रास' इन दो शब्दों के मेल से बनाता है शब्द अनुप्रास| 'अनु' का अर्थ है बार-बार और 'प्रास' का अर्थ है वर्ण / अक्षर| इस प्रकार अनुप्रास का शाब्दिक अर्थ हुआ कि जब एक अक्षर बार बार आए तो वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है| बहुचर्चित पंक्ति ही काफी है अनुप्रास अलंकार को समझने के लिए:-
चंदू के चाचा ने चंदू की चाची को चाँदनी चौक में चाँदी की चम्मच से चाँदनी रात में चटनी चटाई
इस पंक्ति में 'च' अक्षर के बार बार आने से यहाँ अनुप्रास अलंकार हुआ|
अनुप्रास अलंकार के भी कई भेद हैं, यथा:-
[१] छेकानुप्रास
[२] वृत्यानुप्रास
[३] लाटानुप्रास
[४] अंत्यानुप्रास
[५] श्रुत्यानुप्रास
अब इन को समझते हैं एक एक कर के|
छेकानुप्रास
किसी पंक्ति में एक से अधिक अक्षरों का बार बार आना
उदाहरण :-
नानी तेरी मोरनी को मोर ले गए
बाकी जो बचा वो काले चोर ले गए
हिन्दी फिल्म के इस गीत में 'न' - 'र' - 'म' तथा 'क' अक्षरों की बारंबारता के लिए छेकानुप्रास अलंकार का आभास होता है|
वृत्यानुप्रास
किसी पंक्ति में एक अक्षर का बार बार आना
उदाहरण :-
चन्दन सा बदन, चंचल चितवन
हिन्दी फिल्म के इस गीत में 'च' अक्षर की बारंबारता के लिए वृत्यानुप्रास अलंकार का आभास होता है|
लाटानुप्रास
किसी पंक्ति में एक शब्द का बार बार आना
उदाहरण :-
आदमी हूँ, आदमी से प्यार करता हूँ
हिन्दी फिल्म के इस गीत में 'आदमी' शब्द की बारंबारता के लिए लाटानुप्रास अलंकार का आभास होता है|
अंत्यानुप्रास
सीधे सादे शब्दों में कहा जाये तो पंक्ति के अंत में अक्षर / अक्षरों की समानता को अंत्यानुप्रास कहते हैं| दूसरे शब्दों में कहें तो छन्द बद्ध सभी कविताओं में तुक / काफिये के साथ अंत्यानुप्रास पाया जाता है| इस का महत्व संस्कृत के छंदों में अधिक प्रासंगिक है| यथा :-
श्रीमदभवतगीता का सब से पहला श्लोक
धर्मक्षेत्रे, कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सव:|
मामका: पाण्डवाश्चैव, किमकुर्वत संजय||
आप देखें छन्द बद्ध होने के बावजूद इस में अंत में तुक / काफिया नहीं है| अब संस्कृत के एक और श्लोक को देखते हैं:
नमामि शमीशान निर्वाण रूपं
विभुं व्यापकं ब्रम्ह्वेद स्वरूपं
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं
चिदाकाश माकाश वासं भजेहं
तो अब आप को स्पष्ट हो गया होगा कि अंत्यानुप्रास का महत्व कब और क्यों प्रासंगिक है| आज कल तो छन्द बद्ध रचनाएँ तुकांत होने के कारण अंत्यानुप्रास युक्त होती ही हैं| गज़लें तो सारी की सारी अंत्यानुप्रास के साथ ही हुईं [गैर मुरद्दफ वाली गज़लें छोड़ कर]|
कबीरा खड़ा बजार में मांगे सबकी खैर|
ना काहू से दोसती, ना काहू से बैर||
ऊपर के दोहे की दोनों पंक्तियों के अंत में 'र' अक्षर आने के कारण अंत्यानुप्रास अलंकार हुआ| अंत्यानुप्रास के कुछ और उदाहरण :-
आए हो मेरी ज़िंदगी में तुम बहार बन के|
मेरे दिल में यूं ही रहना, तुम प्यार प्यार बन के||
चौदहवीं का चाँद हो या आफ़ताब हो|
जो भी हो तुम ख़ुदा की क़सम लाज़वाब हो|
संस्कृत श्लोकों के अलावा आधुनिक कविता में अंत्यानुप्रास की प्रासंगिकता उल्लेखनीय हो जाती है, यथा :-
ऑस की बूंदें
हासिल हैं सभी को
बिना किसी भेद भाव के
बराबर
निरंतर
यहाँ पर
वहाँ पर
श्रुत्यानुप्रास
इसे समझने से पहले समझते हैं कि एक वर्ग के अक्षर कौन से होते हैं| जैसे क-ख-ग-ग एक वर्ग के अक्षर हुए| च-छ-ज-झ एक वर्ग के अक्षर हुए| ट-ठ-ड-ढ एक वर्ग के अक्षर हुए|
जब किसी एक वर्ग के अक्षर बार बार आयें तो वहाँ श्रुत्यानुप्रास अलंकार होता है|
उदाहरण :-
एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा, जैसे खिलता गुलाब, जैसे शायर का ख़्वाब
हिन्दी फिल्म के इस गीत में एक ही वर्ग के कई अक्षर जैसे कि 'क' 'ख' 'ग' अक्षरों के आने से श्रुत्यानुप्रास अलंकार का आभास होता है| एक और उदाहरण:-
दीदी तेरा देवर दीवाना - 'द' - 'त' व 'न' एक ही वर्ग से हैं इसीलिए यहाँ श्रुत्यानुप्रास अलंकार हुआ|
आशा करते हैं कि हिन्दी फिल्मों के गानों के माध्यम से अनुप्रास अलंकार के विभिन्न रूपों की ये व्याख्या आप को पसंद आएगी| फिर मिलेंगे| नमस्कार|
[आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' जी के मार्गदर्शन और आशीर्वाद के साथ]
अपके और आचार्य सलिल जी के ग्यान को नमन।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत लाजवाब ... नयी नयी बातें सीखने को मिल रही हैं ... आपको और आचार्य जी को बधाई ....
जवाब देंहटाएंकई सारे संदेह जो अलंकारों को लेकर थे मेरे मन में यह पोस्ट पढ़कर दूर हो गए। नवीन भाई को और आचार्य जी को बहुत बहुत बधाई।
जवाब देंहटाएंएक दम नयी और अनूठी जानकारी मिली है आज आपकी इस पोस्ट से...धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंनीरज
मुझे अनुप्रास अलंकार के भेदों के बारे में नहीं मालूम था
जवाब देंहटाएंइस जानकारी के लिये बहुत बहुत धन्यवाद
अनुप्रास का छठा भेद 'अंत्यारंभ अनुप्रास'
जवाब देंहटाएं____________________________
—: प्रियतमे मेघ घनघोर रहे :—
कैसे आता मैं मिलने को
सब मेरा रस्ता रोक रहे.
अपशकुन हुआ आते छींका
कुछ रुका, चला फिर टोक रहे.
मन मार चला बिन ध्यान दिए
ठोकर खाईं पाषाण सहे.
पर मिलना था स्वीकार नहीं
ईश्वर भी रस्ता रोक रहे.
पहले भेजा उद्दंड पवन
करते उपाय फिर नये-नये.
दिक् भ्रम करते कर अन्धकार
पहुँचा वापस वो सफल भये.
विधि के हाथों मैं हार गया
'दिन हुआ दूज' खग-शोर कहे.
फिर भी निराश था मन मेरा
"प्रियतमे, मेघ घनघोर रहे."
*'रस्ता' शब्द का सही शब्द 'रास्ता' है. कविता में मुख सुविधा के लिये रस्ता शब्द लिखा है.
[अंतिम पंक्ति में अनुप्रास का छठा भेद 'अंत्यारंभ अनुप्रास' है. प्रचलित पाँच भेदों से अलग तरह का भेद जिसमें 'जिस वर्ण पर शब्द की समाप्ति होती है उसी वर्ण से अन्य शब्द का आरम्भ होता है.']
यह छठा भेद 'मेरी काव्य-क्रीड़ा' मात्र है. इसे आप लोग ही मान्यता देंगे.
आदरणीय नवीन जी,
जवाब देंहटाएंमेरे पास अनुप्रास के छठे भेद के एकाधिक उदाहरण हैं.. और भी कई नवीनतम अलंकार गढ़े बस इसलिये नहीं कहता कि इस तरह के प्रयासों को कोई महत्व नहीं मिलता इसलिये इस अभिरुचि को मन में ही सुलाए हूँ. आपका अनुरोध 'हरिगीतिका' छंद के लिये मिला ... केवल इतना ही कहूँगा जबरन लिख तो लिये हैं... लेकिन स्वयं ही उनको रिजेक्ट भी कर दिया है... जब तक खुद को संतुष्टि नहीं मिलती तब तक पोस्ट रूप में भेजने का मन नहीं. क्षमा भाव के साथ... यदि कुछ संतोषप्रद रच पाया तो अवश्य प्रेषित करूँगा.