सभी साहित्य रसिकों का पुन: सादर अभिवादन
पिछली पोस्ट डरते डरते डाली थी, सोचा मित्रों को कुछ अनुचित न लग जाए, परन्तु सकारात्मक परिणाम मिलने से अब चैन की साँस मिली| आइये आज पढ़ते हैं बीकानेर वाले राजेन्द्र भाई के कुण्डलिया छन्दों को| बीकानेर की भुजिया की तारी'फें तो बहुत सुनी थीं, पर वहाँ की सुन्दरियाँ भी इत्ती सो'णी होती हैं, अब राजेन्द्र भाई को पढ़ कर पता चला| भाई किसी को इत्तेफाक न हो तो वो भी पढ़ के देख ले :-
सुंदरियाँ ये ब्लॉग्स की
सुंदरियाँ ये ब्लॉग्स की ! वल्लाऽऽ ! ग़ज़ब रुआब|
दिल से मैं करता इन्हें… अदब सहित आदाब||
अदब सहित आदाब ; ख़ूब दिखलातीं ये दम|
घर-ऑफिस के साथ नेट पर गाढें परचम|
'स्वर्णकार' कविराय, मुग्ध पढ-पढ टिप्पणियाँ|
धन्य ‘शब्द स्वर रंग’ - पधारें जब सुंदरियाँ|१|
[मालुम पड़ रहा है भइये, ब्लोग्स की सुन्दरियाँ यदि नाराज हो जाएँ तो आप ही झेलना]
सुंदरियाँ सो’णी लगें
सुंदरियाँ सो’णी लगें, जब वे डालें घास|
वरना क्या है ख़ास ? सब - लगती हैं बकवास||
लगती हैं बकवास ; घमंडिनि-दंभिनि सारी|
प्रौढ़ा तरुणी और कामिनी कली कुमारी|
चांदी-सिक्के जेब - ठूँस, करिए रँगरलियाँ |
आगे-पीछे लाख-लाख डोलें सुंदरियाँ|२|
[भाभ्भीजी नें बतानो पड़ेग्गो]
केशर कली कटार
सुंदरियाँ नीकी लगें , मीठे उन के बैन|
अधर रसीले , मोहिनी - छवि, रतनारे नैन||
छवि रतनारे नैन ; निरख’ सुख-आनँद उपजै|
रचना सुंदर सौम्य - निरख प्रभु की, मन रीझै||
केशर कली कटार, कनक की कछु कामिनियाँ|
स्वर्णकार सुख देय, सहज सुवरण सुंदरियाँ|३|
[मार डाला पाप्पड वाले को यार]
तुम्हारे रूप के सामने - पानी भरें सुन्दरियाँ
सुंदरियाँ देखी यहाँ, हमने लाख हज़ार|
नहीं कहीं तुम-सी प्रिये! छान लिया संसार||
छान लिया संसार; सुंदरी तुम सुकुमारी|
छुई मुई की डाल ! सुशोभित केशर-क्यारी||
मंजरियों सी अंग-गंध ; कुंतल वल्लरियाँ|
सम्मुख तुम्हरे रूप - भरें पानी सुन्दरियाँ|४|
[शुक्रिया राजेन्द्र जी अपने विद्यार्थी काल के अनुभव साझा करने के लिए]
कम्प्यूटर
कम्प्यूटर जी आप तो, बहुत ग़ज़ब की चीज़|
करें भला ता’रीफ़ क्या, हम जैसे नाचीज़!!
हम जैसे नाचीज़ ; सभी की छुट्टी कर दी|
कोटि-कोटि का ज्ञान , भरा जिसकी क्या गिनती|
बड़ी ज़रूरत आप बने हर घर हर दफ़्तर|
तुमको लाख सलाम ! महाज्ञानी कम्प्यूटर|५|
[जय हो]
भारत मेरी जान है
भारत मेरी जान है , इस पर मुझको नाज़|
नहीं रहा बिल्कुल मगर, यह कल जैसा आज||
यह कल जैसा आज ; गुमी सोने की चिड़िया|
बहता था घी-दूध आज सूखी हर नदिया||
करदी भ्रष्टाचार - तंत्र ने, इसकी दुर्गत|
पहले जैसा, आज - कहाँ है? मेरा भारत|६|
[सही बन्धु एक दम सही]
आंखें फड़कें देख कर सुंदरियाँ
सुंदरियाँ इक साथ जब, दिख जातीं दो – चार|
बढ़ती दिल की धुकधुकी, चढ़ता सर्द बुखार||
चढ़ता सर्द बुखार; बचाना तू ही रब्बा|
लग ना जाए आज कहीं इज़्ज़त पर धब्बा|
देखी हैं हर ठौर, टूटती टाँग-खुपडियाँ|
जब जब फडकें आँख - देख - सो'णी सुंदरियाँ|७|
[चलो देर आयद दुरुस्त आयद, अब भाभ्भीजी को नहीं बतान्ग्गो]
-राजेन्द्र स्वर्णकार
सुंदरियाँ ये ब्लॉग्स की ! वल्लाऽऽ ! ग़ज़ब रुआब|
दिल से मैं करता इन्हें… अदब सहित आदाब||
अदब सहित आदाब ; ख़ूब दिखलातीं ये दम|
घर-ऑफिस के साथ नेट पर गाढें परचम|
'स्वर्णकार' कविराय, मुग्ध पढ-पढ टिप्पणियाँ|
धन्य ‘शब्द स्वर रंग’ - पधारें जब सुंदरियाँ|१|
[मालुम पड़ रहा है भइये, ब्लोग्स की सुन्दरियाँ यदि नाराज हो जाएँ तो आप ही झेलना]
सुंदरियाँ सो’णी लगें
सुंदरियाँ सो’णी लगें, जब वे डालें घास|
वरना क्या है ख़ास ? सब - लगती हैं बकवास||
लगती हैं बकवास ; घमंडिनि-दंभिनि सारी|
प्रौढ़ा तरुणी और कामिनी कली कुमारी|
चांदी-सिक्के जेब - ठूँस, करिए रँगरलियाँ |
आगे-पीछे लाख-लाख डोलें सुंदरियाँ|२|
[भाभ्भीजी नें बतानो पड़ेग्गो]
केशर कली कटार
सुंदरियाँ नीकी लगें , मीठे उन के बैन|
अधर रसीले , मोहिनी - छवि, रतनारे नैन||
छवि रतनारे नैन ; निरख’ सुख-आनँद उपजै|
रचना सुंदर सौम्य - निरख प्रभु की, मन रीझै||
केशर कली कटार, कनक की कछु कामिनियाँ|
स्वर्णकार सुख देय, सहज सुवरण सुंदरियाँ|३|
[मार डाला पाप्पड वाले को यार]
तुम्हारे रूप के सामने - पानी भरें सुन्दरियाँ
सुंदरियाँ देखी यहाँ, हमने लाख हज़ार|
नहीं कहीं तुम-सी प्रिये! छान लिया संसार||
छान लिया संसार; सुंदरी तुम सुकुमारी|
छुई मुई की डाल ! सुशोभित केशर-क्यारी||
मंजरियों सी अंग-गंध ; कुंतल वल्लरियाँ|
सम्मुख तुम्हरे रूप - भरें पानी सुन्दरियाँ|४|
[शुक्रिया राजेन्द्र जी अपने विद्यार्थी काल के अनुभव साझा करने के लिए]
कम्प्यूटर
कम्प्यूटर जी आप तो, बहुत ग़ज़ब की चीज़|
करें भला ता’रीफ़ क्या, हम जैसे नाचीज़!!
हम जैसे नाचीज़ ; सभी की छुट्टी कर दी|
कोटि-कोटि का ज्ञान , भरा जिसकी क्या गिनती|
बड़ी ज़रूरत आप बने हर घर हर दफ़्तर|
तुमको लाख सलाम ! महाज्ञानी कम्प्यूटर|५|
[जय हो]
भारत मेरी जान है
भारत मेरी जान है , इस पर मुझको नाज़|
नहीं रहा बिल्कुल मगर, यह कल जैसा आज||
यह कल जैसा आज ; गुमी सोने की चिड़िया|
बहता था घी-दूध आज सूखी हर नदिया||
करदी भ्रष्टाचार - तंत्र ने, इसकी दुर्गत|
पहले जैसा, आज - कहाँ है? मेरा भारत|६|
[सही बन्धु एक दम सही]
आंखें फड़कें देख कर सुंदरियाँ
सुंदरियाँ इक साथ जब, दिख जातीं दो – चार|
बढ़ती दिल की धुकधुकी, चढ़ता सर्द बुखार||
चढ़ता सर्द बुखार; बचाना तू ही रब्बा|
लग ना जाए आज कहीं इज़्ज़त पर धब्बा|
देखी हैं हर ठौर, टूटती टाँग-खुपडियाँ|
जब जब फडकें आँख - देख - सो'णी सुंदरियाँ|७|
[चलो देर आयद दुरुस्त आयद, अब भाभ्भीजी को नहीं बतान्ग्गो]
-राजेन्द्र स्वर्णकार
भारतीय छन्द साहित्य की सेवा स्वरूप शुरू किये गए इस आयोजन में आप सभी के अनमोल सहयोग के लिए एक बार फिर से आभार| इस आयोजन को आगे बढाने के लिए आप लोगों से फिर से सविनय निवेदन है कि अपने अपने छन्दों को सुधार कर यथाशीघ्र भेजने की कृपा करें| जिन लोगों ने अब तक नहीं भेजें हैं, वो भी अब अपने छन्द भेजने की कृपा करें| मथुरा जाने से पहले, कुण्डली छन्द पर आयोजित इस तीसरी समस्या पूर्ति का समापन करने का विचार है ताकि उस के बाद घनाक्षरी कवित्त पर चर्चा आरम्भ की जा सके|
राजेंद्र जी की अद्भुत कलम से निकली इन कुंडलियों ने मन मोह लिया...राजेंद्र जी अपनी रचनाओं से चमत्कृत कर देते हैं...उनका शब्द कोष निश्चय ही हम अल्प बुद्धि लोगों के लिए ईर्षा का विषय है...इश्वर से प्रार्थना है उनमें ये ऊर्जा हमेशा बनी रहे...
जवाब देंहटाएंनीरज
नवीन जी भाया,
जवाब देंहटाएंऔर कित्तो रंग दैखणो है थांरे सुन्दरियां को?
इण वास्तै राजस्थान रंगीलो कैविजै!!
वाह सौणकार जी, आप धरती रो लूण अर रंग दिखायौ!! घणी खम्मा!!
बहुत सुन्दर....
जवाब देंहटाएंवाह वाह इन कुंडलियों में तो मुस्कान का बाँकपन और व्यंग्य की मार दोनों छुपे हैं क्या कहने...
जवाब देंहटाएंराजेंद्र जी की कुंडलियों ने मन मोह लिया...
जवाब देंहटाएंwaaaaaaaah
जवाब देंहटाएंयूँ तो सभी कुंडलियाँ एक से बढ़कर एक हैं मगर "भारत मेरी जान है" दिल जीत ले गई ! दिल से बधाई !
जवाब देंहटाएंराजेंद्र स्वर्णकार जी का कवित्त हर विधा में प्रभावित करता है.
जवाब देंहटाएंवाउ !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर पंक्तियाँ हैं आपकी. आप दोनों को बधाई
जवाब देंहटाएंवाह भाई वाह, आपने तो कोई पहलू नहीं छोड़ा।
जवाब देंहटाएंचलाते रहें, हम आते रहेंगे.
जवाब देंहटाएंभाई वाह, बहुत बहुत बधाई राजेन्द्र भाई को।
जवाब देंहटाएंवाह वाह! बहुत खूब राजेन्द्र जी!
जवाब देंहटाएंवाह राजेंद्र जी..
जवाब देंहटाएंग़ज़ब की कुण्डलियाँ हैं..
छंद को बखूबी निभाया ...
बधाई.
बहुत सुन्दर राजेन्द्र जी ।
जवाब देंहटाएंएक अलग रंग नज़र आयो है ।
अब सुंदरियाँ कैसे रिएक्ट करेंगी , इसका तो इंतजार रहेगा ।
वैसे एक स्पेशल वाली कौन है ? :)
वाह ......बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएं# नवीन जी
जवाब देंहटाएं# ब्लोग्स की सुन्दरियाँ यदि नाराज हो जाएँ तो आप ही झेलना
नवीन भाई , नाराज़ होने का प्रश्न ही नहीं .
सबको शुरूआत में ही अदब सहित आदाब कहा है
यानी ससम्मान नमस्कार ! अर्थात शिष्टता के साथ अभिवादन !
बेअदबी करुंगा तो किसी के नाराज़ होने की संभावना रहेगी न ! :)
# भाभ्भीजी नें बतानो पड़ेग्गो
हमारे सिवा किसी का उन्हें विश्वास ही नहीं ... इसलिए बेफिक्र हूं :)
# शुक्रिया राजेन्द्र जी अपने विद्यार्थी काल के अनुभव साझा करने के लिए
नवीन जी , क्यों पोल खोलने पर उतारू हैं आप मेरी ?
मैं हमेशा घोषित करता हूं कि मैं आजीवन विद्यार्थी हूं :)
# चलो देर आयद दुरुस्त आयद, अब भाभ्भीजी को नहीं बतान्ग्गो
यानी हमारे बीच एक दूजे के राज़ किसी को न बताने का समझौता अमल में ?
शुक्रिया ! शुक्रिया !
# आदरणीय नीरज जी भाईसाहब ,
जवाब देंहटाएंभाई ही भाई की हर छोटी सी बात पर भी उसकी ता'रीफ़ करके उसे प्रोत्साहित करता है .
आपका अपनत्व और स्नेह मुझे मिलता रहे यही मेरा परम सौभाग्य है .
# सुज्ञ जी , घणी खम्मा !
मिट्टी का रंग और नमक पसंद करने के लिए आभार !
आप भी तो म्हारै रंगीले राजस्थान रा ही हो ... :)
माटी नैं याद राखज्यो सा ...
... और नीरज जी आप भी जलमभोम नैं मती भूलज्यो सा !
# आदरणीया पूर्णिमा वर्मन जी ,
कृतज्ञ हूं .
आप जैसी छंद विशेषज्ञ विदुषी के कहे दो शब्द ही किसी छंदसाधक के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण एवं परम सौभाग्य की बात है .
मुझ पर आशीर्वाद बनाए रहें .
# योगराज प्रभाकर जी ,
आप तो हमारा दिल पहले ही जीत चुके थे ...
लेकिन मैं आपकी कुंडलियों पर अपनी बात इसलिए नहीं लिख सका
क्योंकि कुछ समय से मेरी माताजी (७८-७९ वर्षीया) का स्वास्थ्य ठीक न होने से मेरे मन की हालत सही नहीं .
संभव हो तो अपनी आशीषों से मुझे धन्य करते रहें ...
# आ. डॉ टी एस दराल साहब ,
जवाब देंहटाएं# वैसे एक स्पेशल वाली कौन है ? :)
कितने राज़ उगलवाएंगे ?
पहले भी भोलेपन में हमारी ज़ुबान बहुत फिसल चुकी :(
# आ. रश्मि दीदी ,
जवाब देंहटाएं# समीर जी ,
# अवनीश जी ,
# धर्मेन्द्र जी ,
# तिलकराज जी ,
# साहिल जी ,
# दिगंबर जी ,
# डा. मोनिका जी ,
# चैनसिंह जी ,
# अरुण जी ,
आप सबका ह्रदय से आभार उत्साहवर्द्धन के लिए !
# राहुल सिंह जी ,
# विवेक जी ,
कृपा-दृष्टि के लिए धन्यवाद !
सभी कुंडलियाँ बहुत अच्छी हैं.ग़ज़ल के अतिरिक्त इस विधा में भी आप पारंगत हैं ..इस विधा में बहुत अधिक लिखा देखने को मिलता नहीं .
जवाब देंहटाएंसुखद आश्चर्य हुआ....
....................
शुभकामनाएँ
यहाँ तो कुण्डलियाँ ही सुंदरीयां नजर आ रही हैं,
जवाब देंहटाएंजो एक से एक बढ़कर गजब ढहा रहीं हैं.
हरेक ही अपना कुछ न कुछ करती है चमत्कार
क्योंकि इनके रचयिता हैं राजेन्द्र भाई 'स्वर्णकार'
बहुत बहुत शुभकामनाएँ.
राजेन्द्र जी से प्रेरित होकर मेरा पहला 'कुंडली लेखन प्रयास'
जवाब देंहटाएंसुन दरियाँ बिछ जाएँगी, जब हम गायें गीत.
गीत बाद भी रसभरी, करत हैं बातचीत.
करत हैं बातचीत, जोड़ के तार हृदय के.
होत न रस का भंग, जब तलक पत्नी मयके.
कहता मन की आज, छंद लेकर कुण्डलियाँ.
जाते-जाते सभी, घरी करना सुन दरियाँ.
आदरणीय छंद मर्मज्ञों, अभी छंद का प्रवाह पकड़ने में समय लगेगा. इसलिये गलतियाँ बताकर मार्गदर्शन अवश्य करें.
वाह... वाह... उत्तम कुण्डलियाँ.
जवाब देंहटाएंस्वर्णकार जी !! क्या कहने ! गज़ब की कुण्डलियाँ ! मोहक भाषा !! अनुपम शब्दों का प्रयोग !! वाह! वाह !
जवाब देंहटाएं"भारत मेरी जान" अद्वितीय लगी !! हर सच्चे भारतीय की पीड़ा !!!! आपको बहुत बधाई !!!!!!