सभी साहित्य रसिकों का सादर अभिवादन
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घनाक्षरी छंद के बारे में हम ने एक बात नोट की| पढ़ कर समझने की बजाय जब लोगों ने इस को औडियो क्लिप के जरिये सुना तो तपाक से बोल उठे अरे ये तो वो वाला है, हाँ मैंने सुना है इसे, अरे मैं तो जानता हूँ इसे| इस तरह की बातों को ध्यान में रखते हुए हम घोषणा के वक्त दी गयी औडियो क्लिप्स को एक बार फिर से यहाँ दोहराते हैं:-
तिलक भाई द्वारा गाई गई रचना श्री चिराग जैन जी की है, और कपिल द्वारा गाई गई - मेरी|
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धमाकेदार शुरुआत को आगे बढ़ाते हुए, घनाक्षरी छंद पर आधारित चौथी समस्या पूर्ति के दूसरे चक्र में हम पढ़ते हैं - एक से अधिक विधाओं में सृजन के पक्षधर - भाई महेंद्र वर्मा जी के छन्द:-
मान-सम्मान करें, प्यार औ दुलार करें,
घर में सभी से नेह, प्रीत किए जाइए।
सभी मिल-जुल कर, काम-काज निपटाएं,
खेलिए सभी के साथ, हँसिए-हँसाइए।
राग-द्वेष, निंदा-छल, कपट-ईरख-बैर,
आएं जब निकट तो, तुरत भगाइए।
साम-दाम, दंड-भेद, इनसे न कीजे मेल,
राजनीति का अखाडा, घर न बनाइए।
[वाह महेंद्र भाई शिल्प वो भी उत्कृष्ट कोटि का| क्या शब्दों से चित्रों को उकेरा है, भई वाह]
नयना हैं शरमीले, अधर सुधा रसीले,
गाल नवनीत जैसे, कंचन सी काया है।
लट घुंघराली काली, बल खाती नागिन सी,
गजरा कली का, गली-गली महकाया है।
लगे न नजर तुझे, देखे न शहर तुझे,
ठोढ़ी पर तिल जैसे, गोरखा बिठाया है।
रंग तेरा मोतियों सा, रूप तेरा परियों सा,
देख तेरी सुंदरता, चांद भी लजाया है।
[अलंकारों के साथ साथ "गोरखा' अरे बाप रे, क्या कल्पना है सर जी, मजा आ गया| गजरा कली का, गली गली - वाह वाह वाह| आप की आज्ञा हो तो वो वाली बात कह दूँ? इमारत बुलंद थी...............]
ऊंची भी है मोटी भी है, गोल भी मटोल भी है,
बन्नो का बदन जैसे, कुतुब मीनार है।
बीस बार खाती और, तीस बार पीती है ये,
बीच बीच में पचास, चूसती अचार है।
एक सखी कमर पे, एक सखी गले पर,
एक सखी सजाने को, जूड़े पे सवार है।
साठ साड़ी जोड़ कर, निकली पहन कर,
छोटा सा बलम देख, रोती जार जार है।
[साठ साड़ी जोड़ कर, और सजाने को तीन तीन सखियाँ, हास्य में भी धमाल है सर जी]
घनाक्षरी छन्द तो वाकई आप सभी का मन पसंद छन्द साबित हो रहा है| सुरेन्द्र भाई के तुरंत बाद महेंद्र भाई का आना किस अलंकार का परिचायक है? सोचें .............. और टिप्पणियों के माध्यम से बताने की कृपा करें|
कानून का पालन होना चाहिए - हम सब जानते हैं, पढ़ने के बाद टिप्पणी देनी चाहिए - हम सब ये भी जानते हैं; और सत्य क्या है वो भी हम सब जानते तो हैं ही| तो साथियो, साहित्य की इस सेवा में आप सभी अपना अमूल्य योगदान पूर्ववत जारी रखें, यही सविनय निवेदन एक बार फिर करता हूँ|
एक और खुशी की बात जो आप लोगों के साथ साझा करना चाहता हूँ - दो साथियों ने विशेष पंक्ति पर छन्द प्रक्रिया आरंभ कर दी है| आपने वो चुटकुला तो सुना होगा कि किसी कवि / शायर को सजा देनी हो तो उसे दूसरे की शायरी पर दाद देने को कह दीजिएगा| भई सच बोलूँ तो मुझे भी कई दिनों से लग रहा था कि एक बार मैं भी इस आयोजन में शिरकत कर ही लेता हूँ; तो आप लोगों के रेडी-रेफेरेंस के लिए वो विशेष पंक्ति वाला छन्द यहाँ प्रस्तुत करता हूँ| पहले आप इस छन्द को 'पानी' के बारे में समझ कर पढ़ें और दूसरी बार 'ज्ञान' के बारे में| इस छन्द में कही गई हर बात दोनों अर्थों का प्रतिनिधित्व करती है :-
माना कि विकास, बीज - से ही होता है मगर
इस का प्रयोग किए- बिना, बीज फले ना|
इस में मिठास हो तो, अमृत समान लगे
खारापन हो अगर, फिर दाल गले ना|
इस का प्रवाह भला कौन रोक पाया बोलो
इस का महत्व भैया टाले से भी टले ना|
चाहे इसे पानी कहो, चाहे इसे ज्ञान कहो
सार तो यही है यार 'नार' बिन चले ना||
समस्या पूर्ति मंच द्वारा आयोजित, भारतीय छन्द साहित्य की सेवा में समर्पित इस आयोजन को आप लोगों का जो समर्थन मिल रहा है, उस की जितनी प्रशंसा की जाए कम है| पहले कभी भी छन्द न लिखने वाले तमाम कवि / कवियत्रियों का इस दिशा में रुझान काबिलेतारीफ है| इस बार भी कुछ नए सदस्य इस मंच का हिसा बनेंगे|
आप सभी वर्मा जी के छंदों का आनंद लेने के साथ-साथ अपने टिप्पणी रूपी पुष्पों की वर्षा कीजिये, तब तक हम अगली पोस्ट की तैयारी करते हैं|
जय माँ शारदे!
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंbahut sundar chhand vinyaas ..mahendr ji ki kalpana shakti ko bhi salaam..
जवाब देंहटाएंदाद सँभालिए साहब
जवाब देंहटाएंवाह !
http://mushayera.blogspot.com/2011/06/blog-post_06.html
हमें भी प्रेरणा मिली।
जवाब देंहटाएंघनाक्षरी लिखने का प्रयास करेंगे!
उदाहरण बहुत अच्छे लगे |
जवाब देंहटाएंआशा
लाजवाब है महेंन्द्र वर्मा जी का काव्य.
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया प्रयास है। बहुत कुछ सीखने को मिल रहा है।
जवाब देंहटाएंजब से आप मिल कर गए हैं आपके ब्लॉग का रसस्वादन धीरे धीरे कर रहा हूँ...इनता आनंद आ रहा है के शब्दों में बताना नामुमकिन है. आज प्रस्तुत घनाक्षरी के छंद आनंद में कई गुना बढ़ोतरी कर गए हैं. महेंद्र जी के तीनो छंद अद्वतीय हैं, और अंत में आपके छंद ने तो परमानन्द की स्तिथि में ला खड़ा किया है. बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बधाई.....
जवाब देंहटाएंनीरज
साहित्य से जुड़ी इस विधा के प्रचार प्रसार के लिए आपका प्रयत्न सराहनीय है नवीन जी ...
जवाब देंहटाएंमज़ा आ रहा है पढ़ कर ...
आदरणीय महेंद्र वर्मा जी, क्या सुन्दर और सारगर्भित छंद कहे हैं, एक से बढ़कर एक ! गुनगुनाकर देखे मैंने ये सारे छंद, झरने की तरह प्रवाह है इनका ! बधाई स्वीकार करें !
जवाब देंहटाएंमहेंद्र वर्मा जी के तीनों छंद बहुत ही मनमोहक लगे ....
जवाब देंहटाएंनवीन जी , आपकी समस्यापूर्ति बहुत बढ़िया लगी ....सुन्दर छंद लिखा है
आपका यह प्रयास हिंदी साहित्य की छंद विधा को नए आयाम दे रहा है
कमाल के छन्द लिखे हैं वर्मा जी ने निशब्द हूँ। शुभ्क़कामनायें।
जवाब देंहटाएंbehtareen... shabd nhi hai kuch bhi kahne ke liye....
जवाब देंहटाएंबहुत शानदार!!
जवाब देंहटाएंबेहतरीन घनाक्षरी छंद लिखे हैं महेंद्र वर्मा जी ने। बहुत बहुत बधाई। हर छंद में अलग अलग रस होने से और ज्यादा मजा आया पढ़ने में।
जवाब देंहटाएंमहेंद्र जी वर्मा "घनाक्षरी छंद "पढ़ कर हम तो अपने बचपन में लौट गए -जब एक शब्द एक से अधिक बार आये और उसका हर बार अर्थ अलग हो तब "यमक "अलंकार होता है .डी.ए .वी इंटर कोलिज में तब हम कक्षा ११ के छात्र थे .स्थान था बुलंद शहर और हमारे शिक्षक थे डॉ .जगदीश चन्द्र शर्मा (पूर्व व्याख्याता ,हिंदी विभाग एन आर सी कोलिज खुर्जा (बुलंदशहर ).हमें उनके पढाये अलंकारों के उदाहरण आज भी याद हैं -'तीन बेर खातीं ते वे तीन बेर खातीं हैं ,बिजन डुला -तीं ते वे बिजन डुला -तीं हैं ."
जवाब देंहटाएंमाना कि विकास बीज -से ही होता है मगर ,
इस का प्रयोग किये -बिना ,बीज फले न ।
साम दाम दंड भेद ,इनसे न कीजे मेल
राजनीति का अखाड़ा ,घर न बनाइये .
बोध परक शिक्षा प्रद और श्रृंगारिक इन छंदों से रिश्ता -रस ,समेटे न सिमटा
बधाई !नवीन जी !महेंद्र वर्मा जी रस की धारा बहादी वेगवती .
आपकी पोस्ट चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
जवाब देंहटाएंकृपया पधारें
चर्चा मंच
महेंद्र जी!
जवाब देंहटाएंवन्दे मातरम.
इन घनाक्षरी छंदों में भाषा का प्रवाह, कथ्य की सुगढ़ता और सहजता मन को छू गयी. बधाई.
खूब पसंद आये
जवाब देंहटाएंहार्दिक बधाई