सभी साहित्य रसिकों का सादर अभिवादन
देखते ही देखते १० कवियों के ५३ हरिगीतिका छंद पढ़ चुके हम अब तक। इस में सिद्धहस्त रचनाकार भी हैं और नौसिखिये भी। जीवन में पहली बार जिन्होंने हरिगीतिका छंद लिखे हैं, मंच उन का विशेष आभार व्यक्त करता है। इस आयोजन में हमने आध्यात्म - हास्य और शृंगार विषयक स्पेशल पोस्ट पढ़ीं, अब उसी क्रम में आज तिवारी जी भी एक स्पेशल पोस्ट ले कर आए हैं। घर कुटुम्ब की बातें हम सब जानते हैं, बतियाते भी हैं, परन्तु - अरे ये तो होता ही है इस में खास क्या - कह कर उन बातों को दरकिनार कर के साहित्य से दूर रखते हैं। जिन बातों की वज़ह से माहौल सतत प्रभावित होता रहता हो वो हल्की फुलकी बातें न हो कर बेहद गम्भीर बातें होती हैं और उन्हें निरंतर साहित्य में आते रहना चाहिए। शेषधर तिवारी जी ने इन बातों को केंद्र में रख कर अपने छंद भेजे हैं| विशेष बात ये कि 'अनुरोध', 'कसौटी' या 'त्यौहार' शब्द या कि उन के पर्यायवाची लिए बिना भी, छंद, इन शब्दों का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।पहले हमने सोचा कि यह घोषणा के अनुरूप है या नहीं, फिर सोचा इस को पाठक माई-बाप की अदालत में पेश कर के देखते हैं। मंच के अनुसार यह एक सुन्दर प्रयोग है।
शेषधर तिवारी |
सामर्थ्य हो जैसी बनाते, आशियाना या किला।
हिस्से हमारे जो पड़ा है, वह नसीबों में मिला।।
हिस्से हमारे जो पड़ा है, वह नसीबों में मिला।।
लेकिन गरीबों को टपकता - झोंपडा लगता किला।
संतोष का सुख तो हमेशा, झोंपड़ों को ही मिला।१।
संतोष का सुख तो हमेशा, झोंपड़ों को ही मिला।१।
जो आप आगे बढ़ रहे हैं, आप खुश हो लीजिए।
अपने सगे सम्बन्धियों पर, ध्यान थोड़ा दीजिए।।
अपने सगे सम्बन्धियों पर, ध्यान थोड़ा दीजिए।।
ये खुश रहें तो खूब बढ़ चढ़, कर प्रशंसा ही करें।
वरना जलन में तो सगे भी, बेवज़ह आहें भरे।२।
वरना जलन में तो सगे भी, बेवज़ह आहें भरे।२।
सब कुछ गँवाकर जो बनाता, आफिसर संतान को।
फिर क्यूँ वही बेटा कुचलता, बाप के अरमान को।।
फिर क्यूँ वही बेटा कुचलता, बाप के अरमान को।।
बेटा भुलाता बाप माँ को, और अपनी पीढियाँ।
क्यूँ भूलता किसने दिखाई, हैं प्रगति की सीढियाँ।३।
क्यूँ भूलता किसने दिखाई, हैं प्रगति की सीढियाँ।३।
बेटी अगर खुद सास को भी, माँ कहे ससुराल में।
फिर सास भी उस को तनूजा*, मानती हर हाल में।।
फिर सास भी उस को तनूजा*, मानती हर हाल में।।
ससुराल में बेटी रहेगी, यदि स्वयं बन कर बहू।
तो द्वन्द तो होगा बहेगा, भावनाओं का लहू।४।
तो द्वन्द तो होगा बहेगा, भावनाओं का लहू।४।
[तनूजा - बेटी]
दामाद आये रोज घर यदि, तो बहुत अच्छा लगे।
ससुराल यदि बेटा महीने, में गया ओछा लगे।।
ससुराल यदि बेटा महीने, में गया ओछा लगे।।
बेटी हमारी है दुलारी, हर दुआ उसके लिए।
तो क्यूँ नही घर में हमारे, भी बहू सुख से जिए।५।
तो क्यूँ नही घर में हमारे, भी बहू सुख से जिए।५।
अब दान और दहेज को तो, भूल जाना चाहिए।
हमको हमारे पाक रिश्ते, को निभाना चाहिए।।
हमको हमारे पाक रिश्ते, को निभाना चाहिए।।
हम एक दूजे को अगर दिल - से लगा स्वीकार लें।
जीवन सफल होगा हमारा, प्यार देकर प्यार लें।६।
जीवन सफल होगा हमारा, प्यार देकर प्यार लें।६।
यह पोस्ट भी समय लगा कर तैयार की गयी पोस्ट है। तरही और समस्या पूर्ति के लिए जब भी लिखना हो तो सीधे लिखना शुरू नहीं कर देना चाहिए। पहले उस छंद / बहर पर कुछ और लिख कर अपना हाथ साफ करना चाहिए, जब मूड बन जाये, तब हमें घोषणा विषयक लेखन करना चाहिए। हरिगीतिका छंद पर हमने हर्फ़ गिराने को वर्जित रखा है [प्रचलित प्रांतीय शब्दों को स्वीकारा भी है], प्रत्येक दो चरणों में तुकान्त / काफ़िया / अंत्यानुप्रास विधान के नियम का अनुपालन किया है। यति को ले कर हम थोड़े फ्री रहे हैं अब तक। पर साथ ही हम चाहते थे कि इस विषय पर भी काम हो। मंच के निवेदन को स्वीकारते हुए आ. तिवारी जी ने यह ज़िम्मा लिया और उदाहरण पेश किया। आप देखेंगे इन छह छंदों के चौबीस चरणों में से अधिकांश में १६-१२ का विधिवत पालन किया गया है - एक बात को बाक़ायदा दो सम्पूर्ण हिस्सों में बाँट कर कहा गया है। मंच के निवेदन पर - महँगाई, भरष्टाचार या राजनीति से भी अधिक प्रभावित करने वाले ज्वलंत विषय पर लेखनी चलाने के लिए और 'यति विषयक' प्रयास करने के लिए तिवारी जी का बहुत बहुत आभार।
इस पोस्ट पर आप की प्रतिक्रिया का तथा छंद भेजने की प्रोमिस कर चुके अग्रजों के छंदों का इंतज़ार है। भाई छंद साहित्य की सेवा है तो छंद याचना में मुझे कोई संकोच या शर्म महसूस नहीं हो रही।
जय माँ शारदे!
अब दान और दहेज को तो, भूल जाना चाहिए।
जवाब देंहटाएंहमको हमारे पाक रिश्ते, को निभाना चाहिए।।
गजब का लिखा है सर!
यह ब्लॉग अपने आप मे बहुत खास है।
सादर
सामर्थ्य हो जैसी बनाते, आशियाना या किला।
जवाब देंहटाएंहिस्से हमारे जो पड़ा है, वह नसीबों में मिला।।
लेकिन गरीबों को टपकता - झोंपडा लगता किला।
संतोष का सुख तो हमेशा, झोंपड़ों को ही मिला।१।
bahut sundar...
बहुत ही शानदार हरिगीतिका छंद लिखे हैं तिवारी जी ने। उनकी लेखनी को नमन
जवाब देंहटाएंतिवारी जी को बधाई।
जवाब देंहटाएंbahot achchi lagi......
जवाब देंहटाएंशेष धर जी के ये लाजवाब छंद पढ़ कर मज़ा आ गया ... आपका प्रयास भी अनमोल है हिंदी की इस सेवा में ...
जवाब देंहटाएंलाजवाब छंद ....,बहुत अच्छा लिखा है आपने !
जवाब देंहटाएंवाह! लाज़वाब छंद हैं...
जवाब देंहटाएंसादर...
गुरुदेव बहुत सुन्दर!
जवाब देंहटाएंकथ्य ओर शिल्प की दृष्टि से बेहतरीन ओर लाजवाब छंद ! १६-१२ के स्ट्रक्चर को स्ट्रिक्टली फोलो करने से छंद एक गज़ब की बुलंदी पा गए हैं, आद शेषधर तिवारी भाई को मेरी हार्दिक बधाई !
जवाब देंहटाएंइस प्रकार की छंद रचना है तो बहुत कठिन पर कोशिश तो हो ही सकती है |अच्छे छंद के लिए बधाई |
जवाब देंहटाएंआशा
sheshdhar jee!
जवाब देंहटाएंsashakt sarthak srijan hetu badhaee.
सामयिक विषयों पर बहुत प्रेरणाप्रद छंद रचे हैं तिवारी जी ने जो जागरूकता लाने में सशक्त एवं सक्षम हैं ! तिवारी जी को बहुत बहुत बधाई !
जवाब देंहटाएंहम एक दूजे को अगर दिल - से लगा स्वीकार लें।
जवाब देंहटाएंजीवन सफल होगा हमारा, प्यार देकर प्यार लें।
इन पंक्तियों में सारे कथ्य का सार आ गया. बहुत ही गंभीरता से आदरणीय शेषधर जी ने छंद का निर्वाह किया है. शिल्प, कथ्य और गेयता की कसौटी पर खरे उतरे सभी बंद के लिये हार्दिक बधाई.
--सौरभ पाण्डेय, नैनी, इलाहाबाद (उप्र)
शेष जी !! आपकी रचनायें पढ कर तबीयत होती है कि शेष सभी की रचनायें कही किनारे धर कर --आपकी रचनाओं को अधर से लगा लें --वाह वाह !! बहुत ही सुन्दर !!
जवाब देंहटाएंआप सभी विद्वज्जनों को बहुत बहुत धन्यवाद. नवीन भाई को एक सशक्त मंच प्रदान करने एवं सफल संचालन के लिए बधाई
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