मित्रो इस साहित्यिक प्रयास के पहले प्रतिभागी बनने का गौरव प्राप्त हुआ है भाई उमा शंकर चतुर्वेदी उर्फ कंचन बनारसी जी को| आप स्वयँ देखिएगा कितनी सहज-सरस-सुंदर-सुमधुर चौपाइयाँ प्रस्तुत की हैं आपने| भारतीय छंद शास्त्र विधा के क्षेत्र में एक नया प्रयास रूप आरम्भ हुए इस प्रायोजन में अपनी सहभागिता दर्ज करा कर आपने सहज वन्दनीय कार्य किया है| आपको बहुत बहुत आभार| आशा है अन्य साहित्य रसिक भी इस दिशा में अपना अमूल्य योगदान अवश्य प्रदान करेंगे|
आपका ब्लॉग:- http://kanchanbanarshi.blogspot.com/
खुद अपनेंपन से भगते हो । पता नहीं किसको ठगते हो ॥ रात - रात भर जब जगते हो । अंतर मन से तब भजते हो ॥ प्रीत पाग में पगते हो तुम । कितने अच्छे लगते हो तुम ॥प्रस्तुतिकर्त्ता: श्री उमा शंकर चतुर्वेदी उर्फ कंचन बनारसी
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सब कुछ करते हो फिर भी जाने कैसे अच्छे लगते हो....
जवाब देंहटाएंक्या बात है महाप्रभु.......?
भावनाएं ही टकरा दी आपस में... वाह... :)
मैंने सोचा कोशिश कर लूँ
जवाब देंहटाएंमैं भी शायद कुछ नम्बर लूँ
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जब जब हम तुमसे मिलते हैं
फूल लगे दिल में खिलते हैं
पर तेरा मन समझ न पायें
फिर भी अपने को समझाएँ
धीरे धीरे सब होता है
क्यूँ अपना धीरज खोता है
तुझ पर अपना सब कुछ वारूँ
मैं तो तेरी ओर निहारूँ
गुस्से में जब तकते हो तुम
कितने अच्छे लगते हो तुम
जोगेंद्र जी और तिवारी जी आभार आप दोनो का| समस्या पूर्ति के बाबत पूरी जानकारी इस लिंक पर है:-
जवाब देंहटाएंhttp://samasyapoorti.blogspot.com/search?updated-min=2010-01-01T00%3A00%3A00-08%3A00&updated-max=2011-01-01T00%3A00%3A00-08%3A00&max-results=1
कंचन जी तो पारस हैं। जिस शब्द को छूते हैं वही कंचन बन छंद में ढल जाना चाहता है। आपके प्रसिद्ध खण्डकाव्य 'हिंदी' और 'गंगा' में चमत्कृत कर देने वाले छंद मौजूद हैं।
जवाब देंहटाएं..कंचन जी ब्लॉग जगत से जुड़े यही अच्छी बात है।
देवेन्द्र भाई आप सही कह रहे हैं| आशा है आप भी इस साहित्य सेवा में अपना अमूल्य योगदान देना चाहेंगे| अधिक जानकारी के लिए लिंक दे रहा हूँ:-
जवाब देंहटाएंhttp://samasyapoorti.blogspot.com/search?updated-min=2010-01-01T00%3A00%3A00-08%3A00&updated-max=2011-01-01T00%3A00%3A00-08%3A00&max-results=1
बहुत सुंदर तरीके से समस्यापूर्ति की है उमाशंकर जी ने। बधाई
जवाब देंहटाएंअच्छी चौपाइयां लिखी हैं कंचन जी ने. बधाई. हमें भी इनसे सीखने को मिला.
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