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सोमवार, 25 जुलाई 2011

घनाक्षरी समापन पोस्ट - १० कवि, २३ भाषा-बोली, २५ छन्द

सभी साहित्य रसिकों का सादर अभिवादन
कोस कोस पे पानी बदले तीन कोस पे बानी

इस पोस्ट को पढ़ने के लिए विशेष समय और रुचि की आवश्यकता है

देखते ही देखते चौथी समस्यापूर्ति के समापन का समय भी गया| खड़ी बोली में १६ कवियों / कवियत्रियों के ४२ घनाक्षरी छंदों को पढ़ने के बाद, प्रांतीय / आंचलिक भाषा / बोलियों को समर्पित इस समापन पोस्ट में हम पढ़ेंगे १० कवियों द्वारा २३ भाषा / बोलियों में शब्दांकित किए गये २५ घनाक्षरी छंदों को|
पोस्ट काफी बड़ी होने के कारण नो मोर प्रस्तावना - नो मोर भूमिका और नो मोर टिप्पणियाँ मंच की तरफ से| इतना ज़रूर कहेंगे कि बड़ी ही मेहनत से तैयार किए गए छंदों से सजी इस पोस्ट को तसल्ली से पढ़ कर टिप्पणी में वह लिखें, जो भविष्य में और अच्छे काम का हेतु बने|
एक और बात इस पोस्ट में सम्पादन को ले कर बहुत ज्यादा काम नहीं किया गया है, बल्कि छंदों को यथावत प्रस्तुत करने को प्राथमिकता दी गयी है|
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भोजपुरी
घन घड़-घडात बा , रोज बरस जात बा,
ताल नद अघात बा , पानी घनघोर बा |

अतड़ी कुलबुलात, रोज कमा रोज खात,
कहीं नहीं अन्न पात, थका पोर-पोर बा |

जमींदार, साहूकार, देवें नाहीं एहि बार,
हवालाते पड़े - सड़े, पक्का जमाखोर बा |  

नैनी हो या मुक्तसर, गेहूं सड़ा रोड पर,
चहुँ ओर भुखमरी, खाद्य-मंत्री ढोर बा ||
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ब्रजभाषा [मथुरा]
नौ दस महीना तो कों, कोख में सहेजौ मातु,
तब कहूँ जायकें तू, दुनिया में आयौ है ||
बोलबो सिखायौ तोय, चलबो सिखायौ तोय,
रुख तेरौ राखौ चाहें, आप दुःख पायौ है ||

आज बन कें लायक, भूल गयौ मैया बाप,  
धन मान पायकें तू, बडौ इतरायौ है ||
आखिन में लाज नायं, बात करै बड़ी बड़ी,
शान का बघारै तैने, मान हूँ गंवायो है ||
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अवधी [प्रतापगढ़]

बादर के रूप धरि, आय बाटें कामदेव,
फूलन के बान बनि, बूँद सब आय बा|

तन मोर मन मोर, दूनव बेचैन गोरी,
पीर मोरे अंग अंग, बूँद जगाय बा|  

सब जीव जन्तु देखा, प्रेम माँ मगन बाटें,
बूँदन कै चोट आज, सबका हराय बा|  

आवा गोरी छोड़ लाज, हमैं प्यार करा आज,
बरसात रानी एक, साल बाद आय बा||



फूल सा , शूल सा , मधु सा , दूध सा ,
जल अनल सा , गोरी तोरा रूप बा|  

आग लगावत बा, आग बुझावत बा,
चैन लैके चैन देत, अजब अनूप बा|

युद्ध शांति दूनव का, पैदा कर सकत है,  
घनी छाँव कबहूँ ता, कभी तेज धूप बा|  

कोऊ पार नाहीं पावा, आज तक भागके हो,  
ऊहै इहाँ पार होय, जौन जात डूब बा ||

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राजस्थानी [बीकानेर]
काजळिया-राता-लीला नैण लागै आछा गोरी,  
बणावो इंयांनैं घड़ी-घड़ी तलवार क्यूं ?

चावै बांरै खून सूं मंडावो मांडणा ; मनावो,
नैण-बाण मारनित तीज क्यूं तिंवार क्यूं ?

प्रीत रा पुजारियां रै , दरस-भिखारियां रै,
काळजै चलावो निज रूप री कटार क्यूं ?

'राजिंद' है दास थांरौ , आपे संभाळ लेसी,  
एकेला उठावो थे जुवानी रौ भार क्यूं ?

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छत्तीसगढी [रायपुरिहा]

दोनों हाथ के सोभा हे, दान करे ले जी संगी,  
मन के सोभा बड़े के, मान करे ले हाबै।

दोनों भुजा के सोभा हे,मेहनत ले जी संगी,  
मुंह के सोभा तो भाई, सच बोले ले हाबै।

कान के सोभा हे मीठ गोठ सुने ले जी संगी,  
आंखी के सोभा तो बने भाव देखे ले हाबै।  

चेहरा सुंदर हावै, हिरदे के खुसी ले जी,
मनखे के सोभा उपकार करे ले हाबै।

सोभा - शोभा  
करे ले - करने से  
हाबै - है
गोठ - वाणी  
मनखे - मनुष्य
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हिंदुस्तानी कबित्त
 (पड़ोसी मुल्क के नाम)

कभी नफरत के , खंडहर तलाशना,
अम्न--सुकून वाले, मंज़र तलाशना !  

कुछ दूत शांति के भी, जिनसे तराशें जाए,
कभी किसी रोज़ ऐसे, पत्थर तलाशना !

इसकी ही नोक यारा, जान तेरी ले डाले,
छोड़ दे पडोसी अब, खंजर तलाशना !  

हम तो मिटाना चाहें, धूप शक शुबे वाली ,
तू भी तो यकीन वाला, शजर तलाश ना !


(ਦੋ ਘਨਾਛਰੀ ਕਬਿੱਤ - ਪੰਜਾਬ 'ਤੇ ਪੰਜਾਬੀਆਂ ਦੇ ਨਾਂ)
(दो घनाक्षरी छंद पंजाब और पंजाबियों के नाम)  
(ਪੰਜਾਬ) (पंजाब

ਪੰਜਾਂ ਪਾਣੀਆਂ ਦੀ ਭੂਮੀ, ਜੰਮੇ ਐਸੇ ਸੂਰਮੇ ਜੀ,
ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਮਜ੍ਹਬ ਪ੍ਰੇਮ, ਜਿੰਦਾ-ਦਿਲੀ ਜਾਤ ਹੋ !

ਪਾਵਨ ਸ਼ਲੋਕਾਂ ਨੇ ਤੇ, ਗੁਰੂ ਦੀਆਂ ਬਾਣੀਆਂ ਨੇ,
ਕੀਤੀ ਹਰ ਸ਼ਾਮ ਸੋੰਣੀ, ਸੋੰਣੀ ਪਰਭਾਤ ਹੋ !

ਅੰਨ ਖੁਲ੍ਹਾ, ਜਲ ਖੁਲ੍ਹਾ, ਦਿਲ ਖੁਲ੍ਹੇ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਨੇ,
ਖੋਲ੍ਹ ਕੇ ਖ਼ਜ਼ਾਨੇ ਖੁਲ੍ਹੇ, ਦਾਤਾ ਦਿੱਤੀ ਦਾਤ ਹੋ !

ਜਿਸ ਧਰਤੀ ਤੇ ਰਚੇ, ਗੀਤਾ ਤੇ ਗਰੰਥ ਦੋਵੇਂ,
ਉਸ ਧਰਤੀ ਤੋਂ ਵਾਰਾਂ, ਸਾਰੀ ਕਾਇਨਾਤ ਹੋ !

(सरलार्थ)
पँजां पाणीआँ दी भूमी = पांच नदियों कि धरती  
जम्मे ऐसे सूरमे जी = ऐसे सूरमे जनती है ,
जिन्हां दा धरम प्रेम = जिनका धर्म प्रेम है
जिंदादिली जात हो = और जिंदादिली जाति !  

पावन शलोकां ने ते = पावन श्लोकों ने
गुरु दियाँ बाणीयाँ ने = तथा गुरबाणी ने ,  
कीती हर शाम सोणी = हर शाम को सुन्दर बनाया  
सोणी परभात हो = हर सुबह को सुन्दर बनाया !

अन्न खुल्ला जल खुल्ला = प्रचुर अन्न, प्रचुर जल
खुल्ले दिल लोकां दे वी = लोगों के खुले दिल  
खोल के खजाने खुल्ले = खुले खज़ाना खोलकर
दाता दित्ती दात हो = प्रभु ने बक्शिशें दी हैं !

जिस धरती ते रचे = जिस भूमि पर रचे गए
गीता ते गरंथ दोवें = गीता और गुरु ग्रन्थ दोनों,
उस धरती तों वारां = उस भूमि पर कुर्बान कर दूँ
सारी कायनात हो = पूरा ब्रह्माण्ड !

(ਪੰਜਾਬੀ) (पंजाबी

ਭੰਗੜੇ ਤੇ ਗਿਧਿਆਂ ਦੇ, ਐਸੇ ਨੇ ਸ਼ੁਕੀਨ ਲੋਕੀ,
ਗਮਾਂ ਨੂੰ ਵੀ ਕਰ ਦਿੰਦੇ, ਨਚ ਨਚ ਮਾਤ ਹੋ !

ਬੰਜਰਾਂ ਚੋਂ ਕਢ ਲੈਂਦੇ, ਹੀਰੇ ਮੋਤੀ ਫਸਲਾਂ ਦੇ,
ਬੱਲੇ ਓ ਪੰਜਾਬੀ ਸ਼ੇਰਾ, ਤੇਰੀ ਅੱਡ ਬਾਤ ਹੋ !

ਹੀਰਾਂ ਐਥੇ, ਰਾਂਝੇ ਐਥੇ, ਸੋੰਣੀ ਮਾਹੀਵਾਲ ਐਥੇ,
ਹਰ ਦਿਲ ਨੂੰ ਹੈ ਮਿਲੀ, ਵਫ਼ਾ ਦੀ ਸੁਗਾਤ ਹੋ !

ਲੋਹੇ ਦੇ ਕੜੇ ਨੇ ਹਥੀਂ, ਲੋਹੇ ਜਹੇ ਸੀਨੇ ਜਿਥੇ,
ਮੈਲੀ ਅਖੀਂ ਤੱਕੇ ਵੈਰੀ, ਓਦ੍ਹੀ ਕੀ ਔਕਾਤ ਹੋ !

(सरलार्थ)
भंगडे ते गिधियाँ दे = भांगड़ा और गिद्धा (एक लोक नृत्य) के
ऐसे ने शुकीन लोकी = लोग इतने शौक़ीन हैं ,
गमां नू तां कर दिंदे = ग़मों को भी कर देते ,
नच्च नच्च मात हो = नाच नाच कर मात !

बंजराँ चों कढ लैंदे = बंजरों से भी निकाल लेते हैं
हीरे मोती फसलां दे = फसलों के हीरे मोती,
बल्ले पजाबी शेरा = धन्य हो पंजाबी शेर !
तेरी अड्ड बात हो = तुम्हारी अलग ही बात है !  

हीरा ऐथे, रांझे ऐथे = यहाँ राज्न्हे भी हैं, यहाँ हीरें भी हैं ,
सोणी महिवाल ऐथे = यहाँ सोहनी माहीवाल भी है ,  
हर दिल नू है मिली = हरेक दिल को मिला
वफ़ा दी सौगात हो = वफ़ा का तोहफा !

लोहे दे कड़े ने हथीं = हाथ में लोहे के कड़े हैं
लोहे जहे सीने जिथे = जहाँ फौलादी सीने हैं  
मैली अखीं तक्के वैरी = दुश्मन मैली आँख से देख भी जाए ,  
ओदी की औकात हो = उसकी क्या मजाल !



(हरियाणवी कबित्त)  
"खाप"


बीतया ज़माना घणा ,ब्यौरा को पाटया यो,
रले कातलाँ के गैल , कैसे माई-बाप यो !

प्रेमी-प्रेमिका नैं मिलै, मौत सरेआम खुल्ली,
आनर-किलिंग कोनी, बड़ा घणा पाप यो !

पेपरां की बात मन्ने, खूब सही लागरी सै,
कोट ते बी होगी बडी, अनपढ़ खाप यो !

प्रेमियाँ के दिलां धोरे, बसया करे है रब्ब,
गर्द लाभेगी तेरी, ले लीये स्राप यो !

(सरलार्थ)
बीतया ज़माना घणा = इतना समय बीत गया
ब्यौरा को पाटया यो = ये बात समझ नहीं आई !
रले कातलाँ के गैल = मिले हत्यारों के साथ
कैसे माई-बाप यो = कैसे माँ-बाप ये !

प्रेमी-प्रेमिका नैं मिलै = प्रेमी-प्रेमिका को मिले
मौत सरेआम खुल्ली = सारेआम और खुलेआम मौत,
आनर-किलिंग कोनी = आनर-किलिंग नहीं है
बड़ा घणा पाप यो = यह महापाप है !

पेपरां की बात मन्ने = अख़बारों कि बात मुझे
खूब सही लागरी सै = निल्कुल ठीक लग रही है !
कोट ते बी होगी बडी = न्यायालय से भी ऊपर हो गई
अनपढ़ खाप यो = ये अनपढ़ लोगों की खाप पंचायत !

प्रेमियाँ के दिलां धोरे = प्रेमियों के ह्रदय में
बसया करे है रब्ब = भगवान का निवास होता है ,
गर्द लाभेगी तेरी = तेरी मिट्टी भी नहीं मिलेगी
ले लीये स्राप यो = यह श्राप मत ले लेना !



असां डे ते वेड़े हेच, बूटे निम्म पिप्पलाँ डे,
डाहडा करें तूँ प्यार, जंड ते करीर कूँ !

हथ वढने कूँ साडे, फडया तूँ हथ जेंदा,
हत्थां चूँ मिटाके वंजू , तेंडी तकदीर कूँ !

साकूँ चोभां लावें क्यऊँ, रोज़ भडकावें क्यऊँ
रावण डे म्यान हिच, मैंडी शमशीर कूँ !

उठ जे खलोते असां, बीया टोटे थीसे तैंडे
मैली अखीं तक्क्यों जे, मेंडे कशमीर कूँ !

(सरलार्थ)
असां डे ते वेड़े हेच = हमारे आँगन में तो
बूटे निम्म पिप्पलाँ डे = वृक्ष नीम और पीपल के
डाहडा करें तूँ प्यार = तुम तो करते हो बहुत प्यार
जंड ते करीर कूँ = कंटीली झाड़ियों को

हथ वढने कूँ साडे = जमरे हथ काटने को
फडया तूँ हथ जेंदा = जिनका तुनमे हाथ पकड़ा है
हत्थां चूँ मिटाके वंजू = हाथों से मिटाकर जाएगा
तेंडी तकदीर कूँ = तुम्हारी तकदीर को

साकूँ चोभां लावें क्यऊँ = क्यों हमारे साथ शरारत करते हो ?
रोज़ भडकावें क्यऊँ = क्यों रोज़ हमें भड़काते हो ?
रावण डे म्यान हिच = रहने दे म्यान में
साडी शमशीर कूँ = हमारी तलवार को

उठ जे खलोते असां = हम अगर उठ खड़े हुए
बीया टोटे थीसे तैंडे = तेरे और टुकड़े हो जाएँगे
मैली अखीं तक्क्यों जे = अगर मैली आँख से देखा
मेंडे कशमीर कूँ = मेरे कश्मीर को



(हिमाचली कबित्त) 
 कुँजुआ

माड़ी जेही ठंड पवै, तपदियाँ रूहाँ कन्ने,
सुक्की भोईं उत्ते कदीं, छाईं मेरे कुँजुआ !

तेरे नाम जिन्द साडी, तींजो असां देई देणी
तूँ ताँ मिंजो सिर दा हैं, साईँ मेरे कुँजुआ !

कुँजुआ सुणाईँ आके,खंड मिठी वंझलीआ,
धारेआँ दे कोल हेक, लाईं मेरे कुँजुआ !

तैनूँ चढी जणा नशा, पूरे सूरे बोतलू दा
भाड़ेआँ दे ओल्हे कदीं, आईं मेरे कुँजुआ !

(सरलार्थ)
माड़ी जेही ठंड पवै = थोड़ी सी ठंडक मिले
तपदियाँ रूहाँ कन्ने = तपती हुई रूह को ,
सुक्की भोईं उत्ते कदीं = खुश ज़मीन पर कभी
छाईं मेरे कुँजुआ = छा जाना मेरे प्रिय !

तेरे नाम जिन्द साडी = मेरी जिंदगी तेरे नाम है
तींजो असां देई देणी = तुझी को दे भी देनी है
तूँ ताँ मिंजो सिर दा हैं = तुम तो मेरे
साईँ मेरे कुँजुआ = स्वामी हो प्रिय

कुँजुआ सुणाईँ आके = प्रिय, आकर सुना देना
खंड मिठी वंझलीआ = खांड से मीठी मुरली,
धारेआँ दे कोल हेक = जलधारा के पास बुलंद आवाज़ में सुर,
लाईं मेरे कुँजुआ = लगा देना प्रिय !

तैनूँ चढी जणा नशा = तुम्हें नशा हो जाएगा
पूरे सूरे बोतलू दा = पूरी बोतल का
भाड़ेआँ दे ओल्हे कदीं = कभी पर्वतों की ओट में
आईं मेरे कुँजुआ = चले आना प्रिय !

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शेषधर तिवारी
अवधी [वाचाल]



कजिया सबेरे वाली संझिया बरसात,  
बड़ा दुःख दे भैया से रह बचि के|

देवरानी जेठानी, झगडा कर थीं पे,
हमरे के रचि-रचि, अपने के गचि के|

बड़ी बड़ी बतिया , लोगवा बिसारि दे ,
छोट छोट बतिया पे, लड़ हुमचि के|
अइसईं घरवा , होई जा सत्यानास,
रह प्रेम से जीय, जिनगी खमचि के||



सरलार्थ:  
सुबह का झगड़ा और शाम की बरसात  
भाई बड़ा दुख देते हैं, इन से बच के रहें

देवरानी और जेठानी का झगड़ा इस बात पर होता है
म्रेरे लोगों को थोडा थोडा और अपने लोगों को ठूंस ठूंस कर

लोग बड़ी बड़ी बातें तो भूल जाते हैं
छोटी छोटी बातों पर बढ़ चढ़ के झगड़ा करते हैं

इसी तरह घर का सत्यानाश हो जाता है  
इसलिए प्रेम से रहो और जीदारी से जिंदगी जियो




के के बदे बनवत, हउ भौजी टिल्ला बुल्ला,
डाकटर भैया अब, लौटि के अइहें|

ओनके दिल्ली वाली, बिल्ली पालि लिहे बाटै,
अब तोहइ छोड़ि, उही संग राहिहें|

बाबू माई खटि खटि, ओनके पढ़ाई दीहें,
ओनहू अहसान, लग ता भूलइहें|

काहे भूलि जा लोग, घर परिवरवा के,
परे जौ बिपति कौनौ, एही काम अइहें||


सरलार्थ

किस के लिए साज शृंगार कर रही हैं भाभीजी  
डाक्टर भैया अब लौट के आवेंगे

उन को तो दिल्ली वाली बिल्ली ने पाल लिया है  
अब आप को छोड़ कर उसी के साथ रहेंगे

माँ-बाप ने उन को कड़ी मेहनत कर के पढ़ा-लिखा दिया
लगता है उन का एहसान भी भुला देंगे

लोग घर परिवार को क्यूँ भूल जाते हैं ,  
विपत्ति में यही अपने ही काम आते हैं |
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सजीव वर्मा 'सलिल'
बुन्देली  

जाके कर बीना सजे, बाके दर सीस नवे,
मन के विकार मिटे, नित गुन गाइए|  

ज्ञान, बुधि, भासा, भाव, तन्नक हो अभाव,  
बिनत रहे सुभाव, गुनन सराहिए|

किसी से नाता लें जोड़, कब्बो जाएँ नहीं तोड़,  
फालतू करें होड़, नेह सों निबाहिए|  

हाथन तिरंगा थाम, करें सदा राम-राम,
'सलिल' से हों वाम, देस-वारी जाइए||


छत्तीसगढ़ी

अँचरा मा भरे धान, टूरा गाँव का किसान,  
धरती मा फूँक प्राण, पसीना बहावथे|  

बोबरा-फार बनाव, बासी-पसिया सुहाव,  
महुआ-अचार खाव, पंडवानी भावथे|

बारी-बिजुरी बनाय, उरदा के पीठी भाय,
थोरको ओतियाय, टूरी इठलावथे|  

भारत के जय बोल, माटी मा करे किलोल,  
घोटुल मा रस घोल, मुटियारी भावथे||  


निमाड़ी

गधा का माथा का सिंग, जसो नेता गुम हुयो,
गाँव s बटोs वोs, उल्लूs की दुम हुयो
मनखs को सुभाsव छे, नहीं सहे अभाव छे,
हमेसs खांव-खांव छे, आपs से तुम हुयो|
टीला पाणी झाड़s नद्दी, हाय खोद रएs पिद्दी,
  भ्रष्टs सरsकारs रद्दी, पता नामालुम हुयो|
'सलिल' आँसू वादsला, धsरा कहे खाद ला,
मिहsनतs का स्वाद पा, दूरs माsतम हुयो||



मालवी:

दोहा:
भणि ले म्हारा देस की, सबसे राम-रहीम|
जल ढारे पीपल तले, अँगना चावे नीम||

कवित्त

शरद की चांदणी से, रात सिनगार करे,
बिजुरी गिरे धरा पे, फूल नभ से झरे|

आधी राती भाँग बाटी, दिया की बुझाई बाती,
मिसरी-बरफ़ घोल्यो, नैना हैं भरे-भरे|

भाभीनी जेठानी रंगे, काकीनी मामीनी भीजें,
सासू-जाया नहीं आया, दिल धीर धरे|

रंग घोल्यो हौद भर, बैठी हूँ गुलाल धर,
राह में रोके हैं यार, हाय! टारे टरे||


 राजस्थानी

जीवण का काचा गेला, जहाँ-तहाँ मेला-ठेला,
भीड़-भाड़ ठेलं-ठेला, मोड़ तरां-तरां का|

ठूँठ सरी बैठो काईं?, चहरे पे आई झाईं,
खोयी-खोयी परछाईं, जोड़ तरां-तरां का|

चाल्यो बीज बजारा रे?, आवारा बनजारा रे?,
फिरता मारा-मारा रे?, होड़ तरां-तरां का.||

नाव कनारे लागैगी, सोई किस्मत जागैगी,
मंजिल पीछे भागेगी, तोड़ तरां-तरां का||


हिन्दी+उर्दू

दर्दे-दिल पीरो-गम, किसी को दिखाएँ मत,
दिल में छिपाए रखें, हँस-मुस्कुराइए|

हुस्न के ऐब देखें, देखें भी तो नहीं लेखें,
दिल पे लुटा के दिल, वारी-वारी जाइए|

नाज़ो-अदा नाज़नीं के, देख परेशान हों,
आशिकी की रस्म है कि, सिर भी मुड़ाइए|

चलिए ऐसी चाल, फालतू मचे बवाल,
कोई करें सवाल, नखरे उठाइए||


भोजपुरी

चमचम चमकल, चाँदनी सी झलकल,
झपटल लपकल, नयन कटरिया|

तड़पल फड़कल, धक्-धक् धड़कल,
दिल से जुड़ल दिल, गिरल बिजुरिया|

निरखल परखल, रुक-रुक चल-चल,
सम्हल-सम्हल पग, धरल गुजरिया|

छिन-छिन पल-पल, पड़त नहीं रे कल,
मचल-मचल चल, चपल संवरिया||

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सरस्वती वंदना
शुभ्र वस्त्र शांत रूप, नैनन में ज्ञानदृष्टि,
देवी हंसवाहिनी को, हाथ जोड़ ध्याइये|

चरण कमल से हैं, आसन कमल का है,
ब्राह्मी ज्ञान दायिनी को, शीश ये नवाइये|

पुस्तक प्रतीक ज्ञान, वीणा सुर पहचान,
प्राणवायु ज्ञान की तो, अब बन जाइये|

त्यागें द्वेष भाव और, भूलें सब बैर-भाव,
ज्ञान बाँट-बाँट सृष्टि, स्वर्ग ही बनाइये||


अवधी [नैमिष]

धानी-धानी जग दीखै, झूलन पै मन-झूलै,
फूलैं-फूल धरती कै, मन भाई बरखा|

दादुर-पपीहा बोलैं, मगन हो मोर नाचैं,
झूमैं रे मोरनियाँ तै, रंग लाई बरखा|

छेद भये छपरा सो, उड़ी रे पलनियाँ जो,
चुवै लागीं कोठरी तो, घर आई बरखा|

बादर-बिजुरिया को, संग-संग में निहारौ.
हूकै हो करेजवा तो, अंगनाई बरखा||
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गुजराती

ઢોકળાં-ખમણ, ભૂંસું, ચેવડા મસાલેદાર,
ફાફડા, ઘારી, જલેબી-ગાંઠિયા પ્રસિદ્ધ છે.

પેંડા તો મલાઈદાર, ઘેરદાર ઘાંઘરો, ને-
કાઠિયાવાડી પાટલા-સાતિયા પ્રસિદ્ધ છે.

કૉક જગ્યા માયાવતી, સોનિયા, જયલલિતા,
કૉક જગ્યા ટાટા વાણી રાડિયા પ્રસિદ્ધ છે.

પણ આખી દુનિયા માં જેમનું પ્રતાપ, ઍ તો,
ગુજરાતી ગરવા ને ડાંડિયા પ્રસિદ્ધ છૅ

देवनागरी लिपि के साथ

ढोकला-खमण, भुसू, चेवडा मसालेदार,
फाफडा, धारी, जलेबी-गांठिया प्रसिद्ध छे|

पेंडा तो मलाईदार, घेरदार घांघरो, ने-
काठियावाडी पाटला-सातिया प्रसिद्ध छे|

कोक जग्या मायावती, सोनिया, जय-ललिता,
कोक जग्या टाटा वाणी राडिया प्रसिद्ध छे|  

पण आखी दुनिया मां जेमनुं प्रताप, तो,
गुजराती गरवा ने डांडिया प्रसिद्ध छे||

[इस गुजराती छंद में मदद स्वरूप भाई पंकज त्रिवेदी जी का आभार]


मराठी

भारतात दुसरा शहेर आहे कोण असा,
जागृत चौवीस तास ज्याची पहिचान हो|  

कुठल्याही भागातून, आला इथे जे इसम,
इकडच्या कायमी तो झाला इनसान हो|  

देशातील सर्वाधिक राजस्व च्या मानकरी,  
जगातील रुचिकर कारोबारी स्थान हो|

छोटी-मोठी घटना बिघाड काय करणार,
मी मुंबईकर, माझा मुंबई महान हो||

सरलार्थ

भारत में ऐसा दुसरा कौन सा शहर है
जिसे कभी सोने वाले शहर की पहिचान हासिल हो  

किसी भी कोने से यहाँ जो भी इन्सान आता है
वो हमेशा के लिये यहाँ का हो जाता है  

देश में सब से ज्यादा राजस्व भरने का गौरव हासिल है इसे  
दुनिया का पसन्दीदा कारोबारी स्थान है

छोटी-मोटी घटना क्या बिगाड लेंगी  
मैं मुंबईकर हूं, मेरा शहर मुंबई महान है
 
===========================================
कहने की जरूरत नहीं कि आज ज़्यादातर घरों से उन से संबन्धित भाषा / बोलियाँ लुप्त होती जा रही हैं| ऐसे में अग्रजों के सुझाव के अनुसार घनाक्षरी की इस समापन पोस्ट को प्रांतीय-आंचलिक भाषा-बोलियों को समर्पित किया गया है| इस साहित्यिक महत्कर्म में प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से सहकार्य करने वाले हर छोटे-बड़े सहकर्मी का मंच दिल से आभार व्यक्त करता है| अग्रजों-अनुजों ने जिस मेहनत और लगन से इस पोस्ट को सार्थक बनाने के लिए रात दिन मेहनत की है, उस की जितनी प्रशंसा की जाये, कम ही होगी|
मंच का यह प्रयास यदि आप को पसंद आए तो ज्यादा से ज्यादा लोगों तक इस पोस्ट को पहुंचाने की कृपा करें| आप लोग इस ऐतिहासिक पोस्ट का रसास्वादन करें, अपनी बहुमूल्य टिप्पणियों की बरसात करें और हम कुछ समय के लिए विराम ले कर फिर से हाजिर होंगे आप के दरबार में 'हरिगीतिका' छंद पर बतियाने के लिए| छोटी सी हिंट दिए देते हैं हरिगीतिका यानी 'श्री राम चन्द्र कृपालु भज मन हरण भव भय दारुणं" - और इस से मिलती जुलती एक ग़ज़ल भी है| मंच को आप का अनवरत सहयोग प्रदान करने के लिए एक बार फिर से आभार|
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अभी भी कई सारी बोलियों में छंद अपेक्षित हैं|
जैसे जैसे छंद आते जायेंगे, हम इसी पोस्ट को एडिट करते रहेंगे|
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जय माँ शारदे!!!

32 टिप्‍पणियां:

  1. अभी हर कवित्त दो-दो पांच-पांच बार पढ़ूंगा , एक-एक बार तो पढ़ कर आनन्द ले ही लिया है …

    जवाब देंहटाएं
  2. …लेकिन हार्दिक बधाई तो स्वीकार कर ही लीजिए नवीन जी
    नमन है आपकी श्रम साधना और छंद बद्ध सृजन के प्रति समर्पण की विशुद्ध सात्विक भावना को …

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत ही सुंदर ...एक से बढ़कर एक बेहतरीन
    बहुत बहुत आभार पढवाने के लिए ....... नवीन जी

    जवाब देंहटाएं
  4. वाह-वाह नवीन भाई..... इतने सारे रंग एक साथ प्रस्तुत कर दिए आपने..... वाकई हमारा भारत महान है जो इसमें इतने सारे रंग एक साथ छिपे हैं और जब वे एक साथ मिलकर बाहर आते हैं तो एक खूबसूरत रंगोली का निर्माण करते हैं... आपके इस महासफल प्रयास का हार्दिक धन्यवाद... एवं भविष्य में ऐसे आयोजनों के लिए शुभकामनाएँ।

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  5. यह सब प्रस्तुतियाँ मिट्टी से जुडी हैं, इसलिए इसकी गंध मदमस्त कर जाती है. इन्हें किसी माप-दंड की बलि चढाए बिना- इनकी अल्ह्ड़ता पर वारी-वारी जाना चाहिए.

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  6. देश की सोंधी खुशबू से भरी इस पोस्ट में निर्मल आनंद का खज़ाना छिपा है....बधाई इस आयोजन के लिए और इस पोस्ट को पढ़ने का अवसर देने के लिए ....नवीन जी गुजराती में आपकी सुन्दर घनाक्षरी के लिए विशेष रूप से बधाई.... DR.Brijesh

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  7. सलिल नवीन योगराज अम्बरीष रवि
    महेन्द्र धर्मेन्द्र शेष शेखर बड़ाई है !
    प्रविष्टि सजाई है कमाल की ! नवीन जी को
    नमन प्रणाम शुभकामना बधाई है !
    कवित्त की पूरी इस शृंखला में गुणियों ने
    निज श्रेष्ठ सृजन से शोभा ही बढ़ाई है !
    सहज ही स्वर्णकार सरस्वती-सुत सुखी ;
    सृजन सुप्रवृति सदैव सुखदाई है !

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  8. भाई नवीन जी एक से बढ़कर एक बोली भाषा के कवि आपने पूरा भारत दर्शन ही करा दिया |आभार

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  9. भारत देश की यही शान है इस देश का यही रंग है विविधता में एकता बहुत बहुत बधाई सराहनीय प्रयास शुभकामनायें

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  10. वाह कमाल है भाई | बहुत-बहुत बधाईयाँ |
    अथक परिश्रम झलक रहा है प्रस्तुति में ||
    आप तो कई भाषाओँ पर समान अधिकार रखते है ||
    गुजराती और मराठी में भी --
    नवीन जी
    आभार ||

    शानदार प्रस्तुति के लिए बधाई ||

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  11. अनूठा काम किया है आपने, प्रत्‍यक्षं किं प्रमाणं.

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  12. रचनाकारों का यह प्रयास गागर में सागर की तरह है। यह सिर्फ़ भाषा की औपचारिकता या छंद कौतुक तक ही सीमित नहीं है बल्कि इसमें साहित्य को समाज का दर्पण बनाने की पम्परा भी निहित है। अपने युगबोध को जिस तरह रचनाकारों ने रूपायित किया है वह बेमिसाल है। सभी कलमकारों को हार्दिक बधाई!---देवमणि पांडेय

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  13. आपका यह श्रमसाध्य कार्य स्तुत्य है नवीन जी !

    सभी रचनाकारों को बहुत-बहुत धन्यवाद .....

    इतनी सारी भाषाओं-बोलियों में एक से बढ़कर एक रसपूर्ण छंदों को पढ़कर मन रसमग्न हो गया |

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  14. very nice sharing, kya abate hai, Hindustan ki sari sear karma di hai iss blog ne

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  15. इस पोस्ट की पी दी एफ बना कर सहेजी पढेगी ... नवीन भाई ... हिंदी के सच्ची सेवा है ये जो आप कर रहे हैं ... इतने दिग्जों को एक मंच पर समेटना और भारत की आत्मा (आंचलिक भाषाएँ) को संजोने का काम किया है ... कमाल के छंद ... बहुत बहुत बधाई ...

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  16. ISE KAHTE HAIN EKTA . IN SABHEE KAA PRACHAAR /
    PRASAAR SARVATR HOONAA CHAAHIYE . SABKEE
    KAVITAAYEN UMDA HAIN .

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  17. नवीनन जी, कमाल कर दिया आपने। यह मंच तो ब्लॉग जगत का लाल किला लग रहा है।
    यह घनाक्षरी महोत्सव तो अपनी तरह का अनूठा आयोजन है। मुझे गर्व है कि मैं भी इस छंद-यज्ञ का सहभागी हूं।
    समस्त साथी कवियों को हृदय से बधाई और शुभकामनाएं।

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  18. नवीन जी,
    इस सरस्वती-आराधना को सफल बनाने के लिए आपका श्रम, रुचि, लगन, धैर्य सब वंदनीय हैं।
    आपको बहुत-बहुत बधाई और मंगल कामनाएं।

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  19. नवीन जीआआपके इस प्रयास से बहुत कुछ सीखने को मिला नत मस्तक हूँ आपके इस श्रमसाध्य कार्य के लिये। सभी की रचनायें एक से बढ कर एक हैं पर पंजाबी ने तां दिल ही लुट लिया\ वारि जावाँ आपणे पंजाब तों। शुभकामनायें\

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  20. शत कोटि नमन मैं, करता नवीन जी को
    जिनके प्रयास आज, ऐसी पोस्ट आई है
    भिन्न भाषा एक छंद, देखकर लगता है
    आसमान में कमान, इंद्र ने चढ़ाई है
    जाति भाषा देश वेश, अंतर मिटे हैं सारे
    बड़े भाग ऐसी पोस्ट, नयनों ने पाई है
    मित्र जुग जुग जियो, और छंद-मधु पियो
    धन्य वो सभी जिनका, आप जैसा भाई है

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  21. बधाई नवीन भाई. प्रतिक्रियाएं पढकर ऐसा लगता है कि आंचलिक भाषाओं के प्रति लोगों में रुझान अभी जिन्दा है. आपके इस प्रयास को सार्थक बनाने में जिन गुणीजनो ने सहयोग किया उन सब को भी नमन करता हूँ.
    भारतीय भाषाओं के प्रसार प्रचार के लिए निरंतर कार्य होते रहना चाहिए. यह केवल आंचलिक तक ही सीमित न रहकर भारत की सभी भाषाओं में होना आवश्यक है. क्यों न अगला प्रयास थोडा और व्यापक हो और दक्षिण भारतीय भाषाओं,बंगाली, असमिया आदि के रचनाकारों तक भी यह सन्देश पहुंचे.
    मेरी शुभकामनाये सदैव आपके साथ हैं.

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  22. घनाक्षरी की मार्फ़त आंचलिक भाषाओं की बंदिशों का रस वर्षंन अप्रतिम रहा संजोये रखने लायक .

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  23. एक से एक निराले अंदाज़!!आंचलिक भाषाओं की एक आंचल में सजावट? यह चुन्नर अब भारतीय लगती है। यह सभी भाषाएं हिन्दी को समृद्ध करती है।

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  24. बहुत सुन्दर प्रयास किये हैं |आंचलिक भाषाएँ बोलने सुनाने में बहुत अच्छी लगती हैं |ये हमारे देश की विबिधता भी दर्शाती हैं |
    नवीन जी आपका प्रयास बहुत सराहनीय है इतनी सारी भाषाओं पर काम करने के लिए |
    बहुत बहुत बधाई रचनाकारों और आपको
    आशा

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  25. नवीन जी प्रशंशा कोई भी शब्द इस पोस्ट के लिए छोटा है...ये तो ब्लॉग जगत की संग्रहनीय पोस्ट हो गयी है...आंचलिक भाषाओँ की पूरी मिठास के साथ लिखा गया घनाक्षरी का प्रत्येक छंद अनूठा अद्भुत विलक्षण है...पंजाबी मेरी मात्र भाषा है, राजस्थानी भाषा के साथ पला बड़ा हुआ, गुजराती दामाद है, महाराष्ट्र में फिलहाल रहता हूँ, हरियाने में ननिहाल है और ब्रज अवधि को खूब पहचानता हूँ इसलिए इन छंदों का मैंने भरपूर आनंद उठाया है...एक आध छंद बंगाली तमिल तेलुगु मलयालम कन्नड़ में भी आ जाता तो पूरा भारत ही समा जाता इस पोस्ट में...इस पोस्ट का प्रत्येक कवि प्रशंशा का हकदार है...कोई भी किसी से कम नहीं है...सभी को साधुवाद.

    आपके द्वारा की गयी महनत शत प्रतिशत सफल रही...बधाई बधाई बधाई...ढेरों बधाइयाँ...

    नीरज

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  26. १० कवि, २३ भाषा-बोली, २५ छन्द। एक बात तो सिद्ध हो ही गयी कि छन्‍दबद्ध काव्‍य का मूल किसी भी भाषा और संस्‍कृति में हो, सभी भाषाओं में इसकी संभावना रहती है।
    इस इंद्रधनुषी प्रस्‍तुति के लिये रचनाकार और ब्‍लॉग स्‍वामी दोनों ही बधाई के पात्र हैं।

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  27. कहीं ईंट कहीं रोड़ा, पूरा कुनबा है जोड़ा,
    छंदों की तरफ मोड़ा, आपने नवीन जी !

    ऐसा हार गूँथ डाला, हैरत में जग डाला !
    ऐसा किया उपराला *, आपने नवीन जी !

    वो भाषाई चौधराई, रास आपको न आई,
    देसी भाषा अपनाई, आपने नवीन जी !

    ठाले बैठे वाले भ्राता, ग़ज़ल विधा के ज्ञाता,
    छंदों से भी जोड़ा नाता, आपने नवीन जी !

    (* उपराला = प्रयत्न)

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  28. .


    नवीन जी
    आपके तो एक पांव मुंबई एक पांव मथुरा वाली स्थिति चल रही है … ईश्वर सब कुशल-मंगल करे ।

    मैं बार-बार इस ऐतिहासिक प्रविष्टि को देखने चला आता हूं
    वैसे तो हर रचनाकार ने अपना विशिष्ट दिया ही है …
    अंबरीष जी , शेषधर जी , नवीन जी किस किस की तारीफ़ करूं … प्रत्येक रचनाकार ने कमाल किया है निस्संदेह !

    लेकिन योगराज जी तो योगराज जी ही हैं
    श्री योगराज प्रभाकर जी की लेखनी की तारीफ़ में शब्द नहीं…
    … क्या लिखा है उन्होंने ! पंजाबी , हरियाणवी , सराईकी , हिमाचली और ग़ज़ल शैली में हिंदुस्तानी कवित्त … सभी एक से एक !

    हां , कुछ रचनाकारों की अनुपस्थिति लगातार खलती रही ।
    न उनकी कुंडली यहां नज़र आई , न घनाक्षरी । … शायद आत्मविश्वास बटोर नहीं पाए …


    नए आयोजन की प्रतीक्षा भी है …


    रक्षाबंधन एवं स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाओ के साथ
    हार्दिक बधाई और मंगलकामनाएं !

    -राजेन्द्र स्वर्णकार

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  29. यह पोस्‍ट पूर्व में पढ़ने से चूक गयी थी, आज ही देख पायी हूं, बहुत ही श्रेष्‍ठ है।

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