सभी साहित्य रसिकों का सादर अभिवादन
उत्सवों का दौर जारी है और क्यूँ न हो - पर्वों का पावन प्रदेश जो है हमारा प्यारा हिन्दुस्तान| इस बात को ध्यान में रखते हुए ही आदरणीय 'सलिल' जी के परामर्श अनुसार 'हरिगीतिका' छन्द को रिजर्व कर लिया गया था इन दिनों के लिए|
घनाक्षरी छन्द पर आधारित चौथी समस्या पूर्ति में आप लोगों ने सफलता के जो प्रतिमान स्थापित किये हैं, आप सभी को साष्टांग प्रणाम| पिछले आयोजन के विशेष आकर्षण रहे दो - एक तो 'विशेष पंक्ति वाले छन्द' और दूसरा 'समापन पोस्ट'| समापन पोस्ट में आप लोगों ने क़माल किया भाई क़माल| ख़ास कर भाई योगराज जी को विशेष रूप से साधुवाद देने की ज़रुरत है जिन्होंने मंच के निवेदन पर सराइकी सहित छह भाषाओं / बोलियों में प्रस्तुतियां दीं| हरियाणवी को सामान्य रूप से हास्य के लिए यूज किया जाता रहा है, पर आपने हरियाणवी में हरियाणे की प्रखर समस्या 'खाप के फैसले' को निरुपित कर एक अहम् काम को अंज़ाम दिया, जिसे आने वाले समय में लोग बार बार रेफर करते रहेंगे| भाई योगराज जी आप की इन प्रस्तुतियों के लिए सिम्पली बोले तो 'हेट्स ऑफ'|
तिलक राज कपूर जी का 'वक्ष कटि से कटा रे', महेंद्र जी का 'ठोडी पर गोरखा रूपी तिल', अजित गुप्ता जी का 'मैं तो चली काम पर', ब्रजेश त्रिपाठी जी का 'ब्यूटी कम्पटीशन', अम्बरीश भाई की अलंकारिक जादूगरी, वीनस की 'सपा बसपा' और शेखर चतुर्वेदी का 'रात भर बदली की ओट से' ने भी काफी प्रभावित किया| श्रीमती अजित गुप्ता जी तो खैर पहले भी छन्द साहित्य से जुड़ी रही थीं, परंतु आदरणीया श्रीमती आशा सक्सेना जी के प्रयास की जितनी भी प्रशंसा की जाये कम ही होगी। मंच ने जिस जिस से भी प्रार्थना की, सभी ने उस प्रार्थना को सम्मान प्रदान करते हुए, अपना सर्वोत्तम प्रस्तुत किया| मंच को विशवास है कि अब यह सभी गुणीजन स्वत: स्फूर्त हो कर इस साहित्य सेवा में अपना अहम् योगदान अवश्य प्रदान करेंगे|
[हाँ ये भी है कि बहुतों ने उस समापन पोस्ट को या तो पढ़ा ही नहीं, और पढ़ा भी तो टिपियाने की ज़रुरत ही नहीं समझी, और समझी भी तो बड़े ही केजुयल वे में - ये एक अपवाद भी जुड़ा है उस विशिष्ट पोस्ट के साथ, खैर अपने को तो छंद साहित्य की सेवा जारी रखनी ही है]
मई से जुलाई तक का समय कहाँ निकल गया पता ही नहीं चला| घनाक्षरी छन्द आधारित आयोजन में जिन लोगों ने चार चाँद लगाये - आगे बढ़ने से पहले, आइये मिल जुल कर उन सब का [प्रस्तुति क्रम के मुताबिक] अभिनन्दन करते हैं:-
१. श्री सुरेन्द्र सिंह झंझट
२. श्री महेंद्र वर्मा
३. श्री योगराज प्रभाकर
४. श्री राजेन्द्र 'स्वर्णकार'
५. श्रीमती आशा सक्सेना
६. श्रीमती अजित गुप्ता
७. श्री सुशील जोशी
८. श्री आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
९. श्री धर्मेन्द्र कुमार 'सज्जन'
१०. श्री राणा प्रताप सिंह
११. श्री ब्रजेश त्रिपाठी
१२. श्री शेखर चतुर्वेदी
१३. श्री अम्बरीश श्रीवास्तव
१४. श्री वीनस केशरी
१५. श्री तिलक राज कपूर
१६. श्री रविकांत पाण्डेय
१७. श्री रविकर
१८. श्री शेष धर तिवारी
और
१९. ये खाक़सार नवीन सी. चतुर्वेदी
जैसा कि आप सभी जानते हैं कि मैं समस्या पूर्ति के सभी आयोजनों से दूर रहता हूँ [प्रस्तुति विषयक], परन्तु समापन पोस्ट में गुजराती और मराठी के कारण मैंने अपना ये उसूल तोड़ा| आइये अब पढ़ते हैं उन कवियों के नाम जिन्होंने चुनौती पूर्ण विशेष पंक्ति पर प्रस्तुतियां दीं:-
१. श्री राजेन्द्र 'स्वर्णकार'
२. श्री आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
३. श्री रविकांत पाण्डेय
इस आयोजन में जिन भाषाओं / बोलियों पर छन्द प्रस्तुत हुए उन के नाम :-
१. प्रचलित हिंदी
२. भोजपुरी
३. ब्रजभाषा
४. अवधी [प्रताप गढ़]
५. राजस्थानी [बीकानेर]
६. छत्तीसगढ़ी [रायपुरिहा]
७. हिंदी+उर्दू [पंजाब आंचलिक]
८. पंजाब
९. पंजाबी [पटियाला]
१०. हरियाणवी
११. सराइकी
१२. हिमाचली
१३. अवधी [वाचाल]
१४. बुन्देली
१५. छत्तीसगढ़ी [जबलपुर]
१६. निमाड़ी
१७. मालवी
१८. राजस्थानी [जयपुर]
१९. हिंदी + उर्दू [मध्य भारत आंचलिक]
२०. भोजपुरी [गोरखपुर]
२१. अवधी [नैमिष]
२२. गुजराती
२३. मराठी
यदि किसी का उल्लेख होने से रह गया हो तो हमें बताने की कृपा करें, हम क्षमा प्रार्थना सहित अगली पोस्ट में इसे अवश्य कवर करेंगे| तो ये तो थी पिछले आयोजन सम्बंधित बातें| अब बतियाते हैं अगले आयोजन के बारे में|
जैसा कि आप सभी को मालुम है कि अगला आयोजन हरिगीतिका छन्द पर होने जा रहा है| हर बार की भाँति इस बार भी हम सब से पहले इस छन्द पर बतियाते हैं| मंच कुछ उदाहरण दे रहा है, आप सभी भी अपनी अपनी जानकारियाँ [सिर्फ हरिगीतिका सम्बंधित] यहाँ सभी के साथ साझा करने की कृपा करें| इस परिचर्चा के बाद समस्या पूर्ति की पंक्ति की घोषणा की जायेगी|
हरिगीतिका छन्द के बारे में
- हरिगीतिका छन्द एक मात्रिक सम छन्द होता है
- ये छन्द कुल चार चरणों वाला छन्द होता है
- प्रत्येक दो पंक्तियों में तुकांत समान होना चाहिए, वैसे चारों पंक्तियाँ भी समान हो सकती हैं|
- प्रत्येक चरण में १६+१२=२८ मात्रा
- १६ वीं मात्र पर यति [बोलते हुए रुकने का क्रम]
- प्रत्येक चरण के अंत में लघु गुरु अनिवार्य
- इस छन्द में हर्फ़ /अक्षर / वर्ण गिराना स्वीकार्य नहीं
- इस छंद की लय कुछ इस तरह से होती है :-
ला - ला - ल - ला ला - ला - ल - ला - ला
ला - ल - ला ला - ला - ल - ला
श्री - रा - म - चं द्र कृ - पा - लु - भज - मन
हर - ण - भव भय - दा - रु - णं
[ऊपर की पंक्ति में 'चंद्र' का 'द्र' और 'कृपालु' का 'कृ' संयुक्त अक्षर की तरह एक मात्रिक गिने गए हैं]
ला - ल - ला ला - ला - ल - ला
श्री - रा - म - चं द्र कृ - पा - लु - भज - मन
हर - ण - भव भय - दा - रु - णं
[ऊपर की पंक्ति में 'चंद्र' का 'द्र' और 'कृपालु' का 'कृ' संयुक्त अक्षर की तरह एक मात्रिक गिने गए हैं]
अब एक उदाहरण तुलसी कृत रामायण से :-
श्री राम चन्द्र कृपालु भज मन हरण भव भय दारुणं।
नव कंज लोचन कंज मुख कर कंज पद कंजारुणं ।।
कंदर्प अगणित अमित छवि नव-नील नीरद सुन्दरं ।
पट पीत मानहु तड़ित रूचि शुचि नौमि जनकसुता वरं।।
[यह स्तुति यू ट्यूब पर भी उपलब्ध है]
मात्रा गणना :-
श्री राम चन्द्र कृपालु भज मन
२ २१ २१ १२१ ११ ११ = १६ मात्रा और यति
हरण भव भय दारुणं
१११ ११ ११ २१२ = १२ मात्रा, अंत में लघु गुरु
नव कंज लोचन कंज मुख कर
११ २१ २११ २१ ११ ११ = १६ मात्रा और यति
कंज पद कंजारुणं
२१ ११ २२१२ = १२ मात्रा, अंत में लघु गुरु
कंदर्प अगणित अमित छवि नव
२२१ ११११ १११ ११ ११ = १६ मात्रा और यति
नील नीरद सुन्दरं
२१ २११ २१२ = १२ मात्रा, अंत में लघु गुरु
पट पीत मानहु तड़ित रूचि शुचि
११ २१ २११ १११ ११ ११ = १६ मात्रा और यति
नौमि जनकसुता वरं
२१ ११११२ १२ = १२ मात्र, अंत में लघु गुरु
हमारे कुछ साथियों को शंका थी कि ये तो संस्कृत या बहुत ही शुद्ध हिन्दी वाला छन्द है| ख़ास कर उन मित्रों के लिए दो उदाहरण राष्ट्र कवि मैथिलीशरण गुप्त जी वाले:-
वो वस्त्र कितने सूक्ष्म थे, कर लो कई जिनकी तहें।
शहजादियों के अंग फिर भी झांकते जिनसे रहें ।।
थी वह कला या क्या कि कैसी सूक्ष्म थी अनमोल थी ।
सौ हाथ लम्बे सूत की बस आध रत्ती तोल थी ।।
[भारत भारती से]
अभिमन्यु-धन के निधन से, कारण हुआ जो मूल है।
इस से हमारे हत हृदय को, हो रहा जो शूल है ।।
उस खल जयद्रथ को जगत में, मृत्यु ही अब सार है ।
उन्मुक्त बस उस के लिए रौ'र'व नरक का द्वार है ।।
[जयद्रथ वध से]
[यहाँ 'जयद्रथ' को संधि विच्छेद का प्रयोग तथा उच्चारण कला का इस्तेमाल करते हुए यूँ बोला जाएगा 'जयद्द्रथ'। पुराणों के अनुसार नरकों के विभिन्न प्रकारों में 'रौरव [रौ र व] नरक' बहुत ही भयानक नरक होता है]
तो ये थे तीन उदाहरण| पहले की मात्रा गणना के अनुसार बाकी दो की मात्रा गणना सहज ही की जा सकती है| फिर भी किसी नवागंतुक को कठिनाई आ रही हो तो मंच को सूचित करने की कृपा करें| हर संभव सहायता यहाँ सभी के लिए सहज ही उपलब्ध है| नो गुरु चेला - ओनली साहित्य मेला| वैसे ठाले बैठे पर भी इस छंद के कुछ उदाहरण देखे जा सकते हैं:-
श्री गणेश वंदना हरिगीतिका छन्द में
कुछ परामर्श भी चाहिए आप लोगों से
१. क्या 'विशेष पंक्ति' वाली घोषणा को जारी रखा जाए ?
२. क्या समस्या पूर्ति के लिए एक से अधिक विकल्प दिए जाएँ [पंक्ति/शब्द] ?
३. क्या एक व्यक्ति के द्वारा भेजे जाने वाले छंदों की संख्या निश्चित की जाए ?
४. क्या अन्य भाषाओं / बोलियों वाला प्रयोग जारी रखा जाए ?
५. और यदि [४] पर हाँ है, तो क्या इसे सम्बंधित कवि की उसी पोस्ट के साथ ही जोड़ दिया जाए - या फिर पिछले आयोजन की तरह समापन पोस्ट में लिया जाए ?
अपने-अपने सुविचारों को रखते हुए आप सभी इस परिचर्चा को आगे बढायें, उस के बाद फिर हर बार की तरह समस्या पूर्ति की पंक्ति की घोषणा की जायेगी| अगली पोस्ट में कुछ औडियो लिंक्स भी दिये जाएँगे|
जय माँ शारदे!
प्रिय बंधु यह आप एक महत्वपूर्ण काम कर रहे हैं. आज की पीढ़ी के जो कवि आ रहे हैं उन्हें इन बातों की कोई जानकारी नहीं होगी. आपका यह काम देर और दूर तक याद किया जायेगा. बधाई.
जवाब देंहटाएं2212, 22122, 212, 2212 ही केवल एकमात्र विकल्प है अथवा प्रत्येक चरण में १६+१२=२८ मात्रा, १६ वीं मात्र पर यति [बोलते हुए रुकने का क्रम], प्रत्येक चरण के अंत में लघु गुरु अनिवार्य का नियम पालन करते हुए अन्य विकल्प भी हो सकते हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत महत्वपूर्ण और काम की जानकारी
जवाब देंहटाएंकाव्य की इतनी विशद् एवं महत्वपूर्ण जानकारी देने के लिये आपकी जितनी सराहना की जाये कम होगी ! कविता की बारीकियां सीखने के लिये उत्सुक जिज्ञासु पाठक सदैव आपके आभारी रहेंगे !
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा जानकारी मिली हरिगीतिका छन्द के बारे में...कुछ अनियमित हो चला था..अब प्रयास करता हूँ कि नियमित आ सकूँ.
जवाब देंहटाएंमात्रिक छंदों में वर्णों का क्रम निर्धारित नहीं होता केवल कुल मात्राओं, यति तथा चरणांत में लघु गुरु का क्रम ही निर्धारित होता है। इसलिए १६+१२=२८ मात्रा वाला छंद जिसके अंत में लघु गुरु आए हरिगीतिका होगा। सबसे आसान है
जवाब देंहटाएंहरिगीतिका हरिगीतिका हरि, गीतिका हरिगीतिका
हरिगीतिका हरिगीतिका हरि, गीतिका हरिगीतिका
हरिगीतिका हरिगीतिका हरि, गीतिका हरिगीतिका
हरिगीतिका हरिगीतिका हरि, गीतिका हरिगीतिका
लो हो गया हरिगीतिका छंद।
बहुत उत्तम जानकारी दी है आपने आभार |
जवाब देंहटाएंआशा
वाह नवीन जी ... मज़ा आ गया इस छंद की व्याख्या पढ़ के ... लाजवाब है ...
जवाब देंहटाएंअब तक की उपलब्धि का सिंहावलोकन पढ़ कर अच्छा लगा।
जवाब देंहटाएंहरिगीतिका की अच्छी जानकारी।
आ. तिलक जी - यह मात्रिक छन्द ही है| परंतु इस में लय की प्रधानता है| चूँकि हम वर्चुअल दुनिया में रहते हुए काम कर रहे हैं, इस लिए धुन भी लोगों को टेक्स्ट के द्वारा ही समझाई जानी है, इसलिए 'ला ला ल ला' वाला रास्ता बेहतर लगता है| भाई आप का फ़ोन नंबर शायद बदल गया है क्या?
जवाब देंहटाएंधर्मेन्द्र भाई आप ने इच्छुक छन्द प्रेमियों का काम और भी आसान कर दिया है|
साधना जी ने तो होमवर्क चालू भी कर दिया है| बधाई उन्हें|
राजेंद्र स्वर्णकार जी को कुछ संशय था, मैं समझता हूँ अब वो नि:शंक हो चुके होंगे|
एक मित्र ने परामर्श दिया है - समस्या पूर्ति आयोजन का संदेशा "ई मेल" से नहीं "ग्रीटिंग कार्ड" से भेजा जाना चाहिए| हा हा हा हा हा हा............... भाई ये हमारे मित्र कुछ ऐसे ही हैं, जब भी बोलते हैं, हँसा ही डालते हैं|
१००+ हिट्स और ९ कमेंट्स, भाई लोग हरिगीतिका में आप लोगों को रूचि है या नहीं, मुझे कैसे मालूम पड़ेगा?
भाई नवीन जी,
जवाब देंहटाएंभारतीय सनातन छंदों को पुन: लोकप्रिय बनाने ओर पुन:प्रतिष्ठित करने का आपका यह जो प्रयास है, उसकी प्रशंसा मैं पहले भी कर चुका हूँ, ओर एक बार पुन: आपको दिल से सादर साधुवाद देता हूँ ! छंदों में लिखने की प्रेरणा मुझे आपसे ओर आचार्य संजीव सलिल जी के नोट्स पढ़कर ही प्राप्त हुई, इसका एतराफ भी मैं पहले कर चुका हूँ ! हरिगीतिका चंद के शिल्प को हम सब के साथ साझा करके आपने जो वन्दनीय कार्य किया है, उसके लिए भी आप हार्दिक बधाई के पात्र हैं !
घनाक्षरी छन्द पर आधारित चौथी समस्या पूर्ति में जहाँ लगभग दो दर्जन भारतीय भाषायों में दो दर्जन से ज्यादा घनाक्षरी छन्द कहे गाए, वहां अगर उन पर प्राप्त टिप्पणियों की बात की जाए, तो उन्हें इतनी कम सँख्या में देख कर मुझे सच में बहुत दुःख पहुँचा, २५ रचनायों पर केवल ३१ प्रतिक्रियाएं ? उन ३१ में से आधा दर्जन तो कवक अकेल्व आदरणीय राजेन्द्र स्वर्णकार जी की ही थीं ! अगर औसत की बात की जाए तो एक रचना के पीछे २ टिप्पणियाँ भी नहीं दी गईं ! सर्वविदित है कि सुधि पाठकों द्वारा दी गईं सार्थक टिप्पणियाँ रचनाकर्मियों के लिए किसी संजीवनी से कम नहीं होतीं ! अब सवाल ये उठता है कि इतनी कम प्रतिक्रियाएं क्यों ? क्या लोगबाग अभी छंदों के प्रति उदासीन हैं ? क्या इस आयोजन की सूचना लोगों तक ठीक से नहीं पहुंची ? क्या आयोजन में प्रस्तुत रचनायों का स्तर ही इस लायक नहीं था कि वे साहित्य-प्रेमियों का ध्यानानाक्र्शन कर पाएं ? कहीं ऐसा तो नहीं कि लोग छंदों को कोई बहुत मुश्किल चीज़ समझ कर इनसे दूर रहे? या इसका कोई ओर कारण है जो हमें पता नहीं चल रहा ? इन बातों पर ध्यान देना अति-आवश्यक है ! अगर हम लोग छंदों पर वाकई कोई संजीदा काम करना चाहते हैं तो इन बातों पर ध्यान अवश्य देना होगा !
अब आपके द्वारा उठाए गए प्रश्नों की बात :
१. क्या 'विशेष पंक्ति' वाली घोषणा को जारी रखा जाए ?
"विशेष पंक्ति" को जारी न रखा जाए, क्योंकि सभी रचनाकार अभी उस स्तर पर नहीं पहुंचे जहाँ पर हमारे कुछेक अग्रज खड़े हैं ! नुझ समेत वे नए रचनाकार जब उस स्तर को नहीं छू पाते तो उनमें एक प्रकार की हीनभावना का आ जाना स्वाभाविक है ! यही हीनभावना उन्हें इन आयोजनों के प्रति उदासीन भी कर सकती है !
२. क्या समस्या पूर्ति के लिए एक से अधिक विकल्प दिए जाएँ [पंक्ति/शब्द] ?
मेरा निजी मत है कि शब्द/पंक्ति/विषय यदि एक ही रखा जाए तो बेहतर है क्योंकि एक ही शब्द/पंक्ति/विषय पर पढना बहुत रोचक होता है !
३. क्या एक व्यक्ति के द्वारा भेजे जाने वाले छंदों की संख्या निश्चित की जाए ?
बिल्कुल नहीं ! जो जितना ज्यादा लिख सके - लिखे !
४. क्या अन्य भाषाओं / बोलियों वाला प्रयोग जारी रखा जाए ?
यह एक अबिनव प्रयोग है, इसे जारी रखना चाहिए !
५. और यदि [४] पर हाँ है, तो क्या इसे सम्बंधित कवि की उसी पोस्ट के साथ ही जोड़ दिया जाए - या फिर पिछले आयोजन की तरह समापन पोस्ट में लिया जाए ?
मेरे ख्याल से सभी रचनाकारों से सभी रचनाये एक साथ ली जाएँ तो बेहतर होगा ! बाद में जोड़ने से निरंतरता टूट जाने का डर रहता है ! सादर !
योगराज प्रभाकर
प्रवास पर थी, इसलिए आज आने पर सबसे पहले इसी पोस्ट को पढा गया। प्रश्नों के उत्तर बाद में दूंगी। बस आपका प्रयास हमें बहुत कुछ सीखने का देता है। आभार।
जवाब देंहटाएंदेखी रचना ताज़ी ताज़ी --
जवाब देंहटाएंभूल गया मैं कविताबाजी |
चर्चा मंच बढाए हिम्मत-- -
और जिता दे हारी बाजी |
लेखक-कवि पाठक आलोचक
आ जाओ अब राजी-राजी-
क्षमा करें टिपियायें आकर
छोड़-छाड़ अपनी नाराजी ||
http://charchamanch.blogspot.com/
बढ़िया। छन्दों का ज्ञान देकर अच्छा काम हो रहा है। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंकनक कोट बिचित्र मनि कृत सुंदरायतना घना।
जवाब देंहटाएं१२ २२ २ २ २१, २१२ २२१२
चउहट्ट हट्ट सुबट्ट बीथीं चारु पुर बहु बिधि बना।।
२२१२ २२१२ २, २१२ २२१२
गज बाजि खच्चर निकर पदचर रथ बरूथिन्ह को गनै।।
२२१२ २१२२ २, २१२ २२१२
बहुरूप निसिचर जूथ अतिबल सेन बरनत नहिं बनै।।
२२१२ २२१२ २, २१२२ २१२
बन बाग उपबन बाटिका सर कूप बापीं सोहहीं।
२२१२ २२१२ २, २१२ २२१२
नर नाग सुर गंधर्ब कन्या रूप मुनि मन मोहहीं।।
२२१२ २२१२ २, २१२ २२१२
कहुँ माल देह बिसाल सैल समान अतिबल गर्जहीं।
२२१२ २२१२ २, २१२ २२१२
नाना अखारेन्ह भिरहिं बहु बिधि एक एकन्ह तर्जहीं।।
२२१२ २१२२ २, २१२ २२१२
करि जतन भट कोटिन्ह बिकट तन नगर चहुँ दिसि रच्छहीं।
२१२२ २२१२ २, १२२ २२१२
कहुँ महिष मानषु धेनु खर अज खल निसाचर भच्छहीं।।
२१२२ २२१२ २, २१२ २२१२
एहि लागि तुलसीदास इन्ह की कथा कछु एक है कही।
२२१२ २२१२ २, १२२ २२१२
रघुबीर सर तीरथ सरीरन्हि त्यागि गति पैहहिं सही।।3।।
२२१२ २२१२ २, २१२ २२१२
ये सारे छंद सुंदरकांड से लिए गए हैं। इसी तरह रामचरितमानस में इन छंदों का बहुतायत से प्रयोग है। इससे यह सहज ही जाना जा सकता है कि ज्यादातर इन छंदों में २२१२ का मात्राक्रम आता है, परन्तु यह आवश्यक नहीं है। यह क्रम २१२२ भी हो तब भी प्रवाह बना रहता है। एकाध जगह पर १२२२ तथा २२२१ का भी प्रयोग है मगर ऐसा करने पर लय हल्की सी बाधित हो रही है।
प्रवाह निरंतर बनाए रखने के लिए आपको २१२२ और / या २२१२ ही लेना पड़ेगा। इसीलिए विद्धानों ने कहा है कि हरिगीतिका छंद को (२+३+२)x४ के रूप में भी लिखा जा सकता है। अब आप ३ को १२ या २१, सुविधानुसर ले सकते हैं। आदरणीय नवीन जी से आगे और स्पष्ट करने का अनुरोध है।
स्तुत्य कार्य ...
जवाब देंहटाएंअन्य भाषाओँ /बोलियों के छंद कवि की समस्यापूर्ति पोस्ट के साथ ही प्रकाशित करें न कि अंत में |
मंच और यहाँ सक्रीय सभी छंद प्रेमियों को आगामी सत्र की शुभकामनाएं,
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद व पिछले सत्र के लिए बधाई
आभार
अब तो इस कक्षा में मैं भी शामिल हो गया गुरु जी। बहुत आनंद आ रहा है।
जवाब देंहटाएंआ. मनोज भाई साब, प्रणाम।
जवाब देंहटाएंजैसा कि मैं पहले भी सभी से निवेदन करता रहा हूँ कि अपने गुरु जी से प्राप्त एवं तदनंतर अन्य गुणी जनों से अर्जित ज्ञान को साहित्य रसिकों के साथ साझा करने का एक प्रयास मात्र है यह। साथ ही आप लोगों के अनुभव और ज्ञान से लाभान्वित भी हो रहा हूँ मैं। फिर तो यह परस्पर ज्ञान का आदान-प्रदान हुआ, इस में न कोई गुरु और न कोई चेला - हम सब तो इस साहित्य मेला का आनंद ले रहे हैं।
सभी को एक बार फिर से प्रणाम ..................
कनक कोट बिचित्र मनि कृत सुंदरायतना घना।
जवाब देंहटाएं१२ २२ २ २ २१, २१२ २२१२ = 26 मात्रा
तुलसी कृत रामचरित मानस के सुंदर काण्ड से उद्धृत इस उदाहरण के इस चरण की कुल मात्रा गणना 26 आ रही है। वर्षों से गीता प्रेस गोरखपुर यही छापती जा रही है और हम आप सब इसे बिंदास पढ़ते भी जा रहे हैं। गोस्वामी तुलसीदास जैसे अद्भुत प्रतिभा के धनी से इस तरह की भूल के बारे में सोचना भी अपराध होगा। यह तो टाइपिंग मिस्टेक लगती है। हम में से हर व्यक्ति को यह बात गीता प्रेस गोरखपुर तक पहुंचानी चाहिए।
हरिगीतिका मात्रिक छंद अवश्य है परंतु उपलब्ध सभी उदाहरणों में इस की ला ला ल ला वाली ध्वनि ही अधिक सटीक दिखी है। विवेचित उदाहरण में भी इसी ध्वनि का बाहुल्य स्पष्ट रूप से दिखता है।
सुन्दर !
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रयास ...बधाई ...
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