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रविवार, 2 अक्तूबर 2011

दो देह पर इक प्राण हो, तो है कसौटी मीत की

सभी साहित्य रसिकों का सादर अभिवादन



स्वागत है, समस्या पूर्ति मंच द्वारा आयोजित हरिगीतिका छंद पर आधारित पाँचवी समस्या पूर्ति के पहले चरण में। शक्ति का पर्व और श्रीगणेश भी नारी शक्ति द्वारा, इस से सुंदर संयोग कोई और हो भी नहीं सकता था। इस बार सबसे पहले छंद भेजे आ. अजित गुप्ता जी ने, तो शुभारंभ उन्हीं के छंदों के साथ।





'त्यौहार' शब्द पर केन्द्रित छंद मालिका

कल प्रेम का त्‍योहार था जो, आज सूना गाँव है।
यह क्‍या हुआ कैसे हुआ है, चुभ रही अब छाँव है।।

मैं रोज ही उत्‍सव मनाती, आज क्‍यूं यह गौण है।
नवरात्र में उत्‍साह धीमा, रात क्‍यूं यह मौन है।१।


हर पर्व मेरा तुम बने थे, दीप सजती रात भी।
फिर दर्द कैसा दे गए तुम, मीत चुभती बात भी।।

फैला अंधेरा घोर पथ पर, मौन सा व्‍यवहार है।
अब रात गहरी कह रही है, आज भी त्‍योहार है।२।


कब जल गयी फिर नेह बाती, धुन्‍ध सारी छट गयी।
इस पर्व पर तुम आ गए तो, पीड़ सारी घट गयी।।

तुम बिन निरर्थक ज़िंदगी, तुम साज हो श्रृंगार हो।
दिन रात हो, ज़ज्बात हो, प्रियतम तुम्ही त्यौहार हो ।३।



'कसौटी' शब्द पर केन्द्रित छंद मालिका


हर तार छू लो तुम दिलों के, क्‍या दिखावा बात का।
ममता लुटाओ जगत में यह नेम हो दिन रात का।।

कब तुम परीक्षा में फंसोंगे, क्‍या ठिकाना मात का।
जिनके ह्रदय में प्रेम हो उन को न डर कुछ घात का।१।



दो देह पर इक प्राण हो, तो है कसौटी मीत की।
दिल साज, सरगम भावना, तो है कसौटी प्रीत की।।

निश्छल ह्रदय में नेह हो, तो है कसौटी रीत की।
सुन कर जिसे दिल झूम उट्ठे वह कसौटी गीत की।२।


आज के दौर मैं जब कोई व्यक्ति छंदों पर लग के, खट के काम करने को तैयार हो जाता है, तो हमारे हृदय में उस के लिए सम्मान और भी बढ़ जाता है। अजित दीदी और उन जैसे वे सभी रचनाधर्मी, जो इस साहित्य सेवा हेतु छन्द रचना में जी जान से खटे हुए हैं, सम्मान के पूरे-पूरे हक़दार हैं। अजित दीदी के छंदों की गेयता और भाव चयन को देख कर सहसा ही 'कुछ तो हम भी करें' वाला भाव उत्पन्न हो जाता है। अजित दीदी को बहुत बहुत बधाई।

छंद आने शुरू हो गए हैं, और साथ ही साथ उन पर काम भी शुरू हो चुका है। क्या क्या विषय और क्या क्या भाव संकलन हैं, पढियेगा तब जानिएगा सर जी| मंच अपने उद्देश्य "सब के साथ मिल कर, रचनात्मक मार्ग पर चलते हुये, भारतीय छंद साहित्य के प्रति लोगों में फिर से रुझान उत्पन्न करना" की तरफ अग्रसर है, और यह हम सब के लिए खुशी का सबब है। 

आप सभी अजित दीदी के छंदों पर प्रशंसा रूपी पुष्पों की बरसात करें, तब तक हम तैयारी करते हैं अगली पोस्ट की। 'अन्य बातें समान रहने पर' अगली पोस्ट में हम एक और परिचित के छन्द पहली बार पढ़ेंगे इस मंच पर।

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विशेष सूचना
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इस हरिगीतिका छंद वाली समस्या पूर्ति  के समापन के उपरान्त, चौपाई छंद वाली पहली स. पू. से ले कर हरिगीतिका छंद वाली पांचवी स. पू. तक के सभी छंदों को 'ई-क़िताब' की श़क्ल में प्रकाशित करने का प्लान है। इस विषय में अपने विचार, यदि कोई हों, तो व्यक्त करने की कृपा करें।
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जय माँ शारदे!

21 टिप्‍पणियां:

  1. अजीत जी की रचना बेहद सुन्दर है ! उसकी भावात्मकता, शब्द चयन, गेयत्व एवं प्रभाव अनुपम है ! इस शानदार शुभारंभ के लिये उनके साथ-साथ आप को भी बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनायें !

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  2. मोहक शुभारंभ !
    अजित जी की हरिगीतिका पढ़ते समय कहीं भी अटकाव महसूस नहीं हुआ। मात्राओं और यति-गति का सुंदर निर्वहन उनके द्वारा किया गया है। भाव की दृष्टि से दोनों रचनाएं अनुपम हैं।
    अजित जी को बधाई और शुभकामनाएं।

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  3. बहुत ही शानदार शुरुआता की है अजित जी ने। जब शुरुआत अच्छी हो तो कहते हैं कि समझो आधा काम हो गया। बहुत बहुत बधाई अजित जो को इन प्रवापूर्ण, भावपूर्ण एवं सार्थक छंदों के लिए

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  4. नवीन जी,
    आपका ब्लाग देखा. बहुत प्रभावित हुआ कि छंद-बद्ध कविता लेखन को आप इतना महत्व दे रहे हैं. "मुक्त छंद" मुझे अधिक नहीं रुचता है तथा इसीलिए ब्लैंक वर्स पर मैं प्राय: प्रतिक्रिया नहीं देता हूँ.


    --ख़लिश

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  5. अजित जी की भावपूर्ण गेय रचनाओं को पढ़ कर बहुत अच्छा लगा |उनका प्रयास अनुकरणीय है |आशा

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  6. इस बार अजित जी के छंद दिए आपने जो बहुत अच्छे हैं. और कुल मिलाकर आपका यह काम ही बहुत महत्वपूर्ण है.

    जवाब देंहटाएं
  7. अजीत जी की रचना बेहद सुन्दर है ! उसकी भावात्मकता, शब्द चयन, गेयत्व एवं प्रभाव अनुपम है ! इस शानदार शुभारंभ के लिये उनके साथ-साथ आप को भी बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनायें !

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  8. सारित्प्रवाह सी अबाध गति....!
    ये पक्तियां विशेष रूप से सुंदर बन पडी हैं -
    हर पर्व मेरा तुम बने थे, दीप सजती रात भी।
    फिर दर्द कैसा दे गए तुम,मीत चुभती बात भी।।
    अजित जी को ढेर बधाई !
    सादर,
    दीप्ति

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  9. नवीन भाई, प्रथम छंद त्‍योहार पर है आपने भूलवश अनुरोध लिख दिया है, कृपया इसे सुधार दें।
    आप सभी को बता दूं कि हमारे पास केवल भाव हैं, हरिगीतिका छंद का ज्ञान नवीन भाई ने ही दिया और जैसे बच्‍चे को कलम पकड़कर लिखना सिखाया जाता है, वैसा ही इन्‍होंने मुझे ये छंद लिखाए। बस मुझे इस बात की खुशी है कि ब्‍लाग जगत के कारण हम विभिन्‍न छंदों की रचना के बारे में जान सके। नवीन भाई जितना परिश्रम कर रहे हैं, शायद हम सभी इसी प्रकार रचनात्‍मक कार्य करें तो यह ब्‍लाग जगत एक श्रेष्‍ठ परिवार बन जाएगा। आप सभी का आभार, जो आप मेरे प्रथम प्रयास को भी सराह रहे हैं।

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  10. बहुत सुन्दर छंद - रचना, आदरणीया अजित गुप्ता जी द्वारा

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  11. बहुत सुख मिला एक सुन्दर पुराने छंद पर आधारित भावपूर्ण रचनाएँ पढ़ कर. अजित जी और नवीन जी को मेरी ओर से हार्दिक बधाई.

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  12. हम तो इस विधा को सीख रहे हैं, और आपके माध्यम से कविओं की रचनाओं का परिचय भी हो रहा है।

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  13. आदरणीय नवीन जी,
    आप द्वारा छंद-अभ्यास करवाने की इस मुहीम से मन गदगद हो गया...
    अजित गुप्ता जी ने हरिगीतिका छंदों से काव्य-रसिकों से योग कर लिया ... इन छंदों की गेयता ही ऎसी है कि बिना योग किये रहा ही नहीं जाता... देर से ही सही.
    जब पढ़ने को मिले तभी सवेरा ............ इन छंदों को अपने उदाहरणों में साधिकार शामिल करने का मन है.

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  14. आ. नवीन जी,
    क्या हरिगीतिका छंद को 'मालिका' छंद भी कहते हैं क्या? मुझे ज्ञात नहीं...

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  15. अजित जी!

    सार्थक सुमधुर हरिगीतिका छंद रचना हेतु बधाई.

    संभवतः आप भूल गयीं की हिंद युग्म पर दोहा की कक्षा में दोहांकुल के अन्य छंदों की चर्चा के समय हमने हरिगीतिका पर भी बात की थी. इस छंद पर कुछ रचनाएँ भी हुई थीं. विस्तार से नवीन जी के साथ यहाँ पुनः नया प्रयास जारी है. आगे भी ऐसे अनुष्ठान विविध मंचों से किये जायेंगे.
    आप से निवेदन है कि राजस्थानी वे विविध रूपों मारवाड़ी, हाडौती, शेखावाटी आदि के हरिगीतिका छंद रचें या संकलन कर प्रस्तुत करें.

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  16. आचार्य जी, मेरे ध्‍यान में हरिगीतिका छंद की चर्चा हिन्‍दयुग्‍म पर नहीं आयी। क्‍योंकि मैं छंदों के सार को अपनी डायरी में नोट करती रही हूँ। आपने राजस्‍थानी भाषा में छंद लिखने को कहा है लेकिन मुझे इन भाषाओं पर अधिकार नहीं है। राजस्‍थान में इतनी भाषाएं बोली जाती हैं कि किसी के लिए भी सम्‍भव नहीं है कि वह सारी भाषाओं का ज्ञान रख पाए।

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  17. आचार्य जी, मेरे ध्‍यान में हरिगीतिका छंद की चर्चा हिन्‍दयुग्‍म पर नहीं आयी। क्‍योंकि मैं छंदों के सार को अपनी डायरी में नोट करती रही हूँ। आपने राजस्‍थानी भाषा में छंद लिखने को कहा है लेकिन मुझे इन भाषाओं पर अधिकार नहीं है। राजस्‍थान में इतनी भाषाएं बोली जाती हैं कि किसी के लिए भी सम्‍भव नहीं है कि वह सारी भाषाओं का ज्ञान रख पाए।

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  18. @आ. प्रतुल जी मैं तो छंद के एक प्रकार की ए बी सी डी में ही उलझा हुआ हूँ। आप के मुताबिक जो पाँच लाख चौदह हजार दो सौ उनतीस प्रकार के बारे में इंगित किया गया है, उसे सुन कर तो मुझे चक्कर आ रहा है............

    यदि मंच के प्रयास से 5 लोग भी एक या दो छंद लिखना शुरू कर देते हैं, तो मुझे लगेगा हम अपने प्रयास में सफल हैं।

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  19. अजित जी !!बहुत भावप्रवण बहुत मोहक और बहुसारगर्भित !! कसौटी के अंतिम छन्द बहुत प्रभावशाली बन पड़े हैं --
    दो देह पर इक प्राण हो, तो है कसौटी मीत की।
    दिल साज, सरगम भावना, तो है कसौटी प्रीत की।।

    बहुत बहुत बधाई ! सुन्दर प्रस्तुतु के लिये !!

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