समस्त सम्माननीय साहित्य रसिकों का सादर अभिवादन
पहली समस्या पूर्ति 'चौपाई' के अगले पड़ाव में इस बार दो रचनाधर्मियों को पढ़ते हैं|
श्री शेखर चतुर्वेदी जी:-
साहित्य वारिधि स्व. डॉ शंकरलाल चतुर्वेदी "सुधाकर" जी के पौत्र, भाई शेखर जी युवा कवि हैं| वर्तमान में अहमदाबाद में कार्य रत हैं| संस्कारों से सुसज्जित उनकी रचना पढ़ते हैं पहले:-
मुझको जग में लाने वाले |
दुनिया अजब दिखने वाले |
उँगली थाम चलाने वाले |
अच्छा बुरा बताने वाले |१|
मेरी दुनिया है तुमसे ही |
प्यारी बगिया हैं तुमसे ही |
इस मूरत को गढ़ा है तुमने|
अनुग्रह किया बड़ा है तुमने|२|
मुझसे प्यार छुपाते हो तुम |
दिल में मुझे बसाते हो तुम |
सर पर कर जब रखते हो तुम|
कितने अच्छे लगते हो तुम|३|
भाई श्री मृत्युंजय जी:-
भाई मृत्युंजय जी ने ब्रज से जुड़ी चौपाइयाँ भेजी हैं| उन से संपर्क न हो पाने के कारण, उन के बारे में विवरण देना सम्भव नहीं हो पा रहा| आप लोग उन के ब्लॉग http://mrityubodh.blogspot.com/ पर उन से मिल सकते हैं| तो आइए पढ़ते हैं उनकी चौपाइयाँ|
श्याम वर्ण, माथे पर टोपी|
नाचत रुन-झुन रुन-झुन गोपी|
हरित वस्त्र आभूषण पूरा|
ज्यों लड्डू पर छिटका बूरा|१|
स्नेह मिलत छन-कती कड़ाही|
भाजा आस लार टपकाही|
नासा रसना मिटत पियासी|
रस भीगी ज्यों होत कपासी|२|
बेगुन कहें बेगि नहीं आवो|
मिलत नित्यही बाद बढावो|
घंटी बजे टड़क टुम टुम टम|
कितने अच्छे लागत हौ तुम|३|
अगली किश्त में २ प्रस्तुतियों के साथ इस पहली समस्या पूर्ति का समापन करेंगे और साथ ही घोषणा करेंगे अगली समस्या पूर्ति की| आप सभी के सहयोग के लिए बहुत बहुत आभार|
पहली समस्या पूर्ति 'चौपाई' के अगले पड़ाव में इस बार दो रचनाधर्मियों को पढ़ते हैं|
श्री शेखर चतुर्वेदी जी:-
साहित्य वारिधि स्व. डॉ शंकरलाल चतुर्वेदी "सुधाकर" जी के पौत्र, भाई शेखर जी युवा कवि हैं| वर्तमान में अहमदाबाद में कार्य रत हैं| संस्कारों से सुसज्जित उनकी रचना पढ़ते हैं पहले:-
मुझको जग में लाने वाले |
दुनिया अजब दिखने वाले |
उँगली थाम चलाने वाले |
अच्छा बुरा बताने वाले |१|
मेरी दुनिया है तुमसे ही |
प्यारी बगिया हैं तुमसे ही |
इस मूरत को गढ़ा है तुमने|
अनुग्रह किया बड़ा है तुमने|२|
मुझसे प्यार छुपाते हो तुम |
दिल में मुझे बसाते हो तुम |
सर पर कर जब रखते हो तुम|
कितने अच्छे लगते हो तुम|३|
भाई श्री मृत्युंजय जी:-
भाई मृत्युंजय जी ने ब्रज से जुड़ी चौपाइयाँ भेजी हैं| उन से संपर्क न हो पाने के कारण, उन के बारे में विवरण देना सम्भव नहीं हो पा रहा| आप लोग उन के ब्लॉग http://mrityubodh.blogspot.com/ पर उन से मिल सकते हैं| तो आइए पढ़ते हैं उनकी चौपाइयाँ|
श्याम वर्ण, माथे पर टोपी|
नाचत रुन-झुन रुन-झुन गोपी|
हरित वस्त्र आभूषण पूरा|
ज्यों लड्डू पर छिटका बूरा|१|
स्नेह मिलत छन-कती कड़ाही|
भाजा आस लार टपकाही|
नासा रसना मिटत पियासी|
रस भीगी ज्यों होत कपासी|२|
बेगुन कहें बेगि नहीं आवो|
मिलत नित्यही बाद बढावो|
घंटी बजे टड़क टुम टुम टम|
कितने अच्छे लागत हौ तुम|३|
अगली किश्त में २ प्रस्तुतियों के साथ इस पहली समस्या पूर्ति का समापन करेंगे और साथ ही घोषणा करेंगे अगली समस्या पूर्ति की| आप सभी के सहयोग के लिए बहुत बहुत आभार|
navनीन जी बहुत अच्छा प्रयास है आपका तरही मे तो कई बार शामिल हुयी हूँ मगर्4 हिन्दी मे छन्द नही लिखे कभी। मृत्यंजय जी के छन्द बहुत अच्छे लगे। बधाई।
जवाब देंहटाएंछंद के बारे में मेरी भी कुछ मर्यादाएं हैं | धन्यवाद् |
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चौपाइयाँ हैं दोनों रचनाकारों को बधाई
जवाब देंहटाएंधर्मेन्द्र भाई, आदरणीय निर्मला जी और 'विश्वगाथा जी आप सभी का आभार|
जवाब देंहटाएंछंद लिखने को काफ़ी लोग दुष्कर मानते हैं| ख़ास कर [फइलुन x ४ =] १६ मात्रा वाली बहर पर ग़ज़ल कहने वाले भी| दरअसल, ये चोइस का मेटर ज़्यादा है|
आप लोगों ने इस प्रयास को सराहा, उस के लिए आप सभी का फिर से आभार|
Chaturvedi ji ki kavita acchi lagi.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर छंद
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चौपाइयाँ हैं दोनों| धन्यवाद् |
जवाब देंहटाएंSunder chand hai sabhi......abhar hai aapka itne sunder chando se parichay karane ka
जवाब देंहटाएंsundar lekhan.... ab main bhi chand likhne ka prayas karungi :)
जवाब देंहटाएंआदरणीय,
जवाब देंहटाएंआज हम जिन हालातों में जी रहे हैं, उनमें किसी भी जनहित या राष्ट्रहित या मानव उत्थान से जुड़े मुद्दे पर या मानवीय संवेदना तथा सरोकारों के बारे में सार्वजनिक मंच पर लिखना, बात करना या सामग्री प्रस्तुत या प्रकाशित करना ही अपने आप में बड़ा और उल्लेखनीय कार्य है|
ऐसे में हर संवेदनशील व्यक्ति का अनिवार्य दायित्व बनता है कि नेक कार्यों और नेक लोगों को सहमर्थन एवं प्रोत्साहन दिया जाये|
आशा है कि आप उत्तरोत्तर अपने सकारात्मक प्रयास जारी रहेंगे|
शुभकामनाओं सहित!
डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’
सम्पादक (जयपुर से प्रकाशित हिन्दी पाक्षिक समाचार-पत्र ‘प्रेसपालिका’) एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)
(देश के सत्रह राज्यों में सेवारत और 1994 से दिल्ली से पंजीबद्ध राष्ट्रीय संगठन, जिसमें 4650 से अधिक आजीवन कार्यकर्ता सेवारत हैं)
फोन : 0141-2222225 (सायं सात से आठ बजे के बीच)
मोबाइल : 098285-02666
इस सुंदर से चिट्ठे के साथ आपका हिंदी ब्लॉग जगत में स्वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!
जवाब देंहटाएंरोचक.
जवाब देंहटाएं