सभी साहित्य रसिकों का सादर अभिवादन
आइये सुनते हैं हरिगीतिका छन्द, हमारे सब के चहेते भाई श्री राजेन्द्र स्वर्णकार जी के मधुर स्वर में।
[१] गणपति वन्दना
वन्दहुँ विनायक, विधि-विधायक, ऋद्धि-सिद्धि प्रदायकं।
गजकर्ण, लम्बोदर, गजानन, वक्रतुंड, सुनायकं।।
श्री एकदंत, विकट, उमासुत, भालचन्द्र भजामिहं।
विघ्नेश, सुख-लाभेश, गणपति, श्री गणेश नमामिहं ।।
[शब्द - नवीन सी. चतुर्वेदी - स्वर - राजेन्द्र स्वर्णकार]
[२] सरस्वती वन्दना
ज्योतिर्मयी! वागीश्वरी! हे - शारदे! धी-दायिनी !
पद्मासनी, शुचि, वेद-वीणा - धारिणी! मृदुहासिनी !!
स्वर-शब्द ज्ञान प्रदायिनी! माँ - भगवती! सुखदायिनी !
शत शत नमन वंदन वरदसुत, मान वर्धिनि! मानिनी !!
[शब्द और स्वर - राजेन्द्र स्वर्णकार]
मैं राजेन्द्र भाई को हमेशा कहता हूँ कि आप वाकई माँ शारदा की असीम अनुकम्पा से अभिभूत सरस्वती पुत्र हैं। एक बार उन्होंने फिर से मुझे सही साबित किया है।
ऊपर के उदाहरण पढ़/सुन कर नए लोग कहीं ये न समझने लगें कि यह छंद तो ईश-वन्दना जैसे उद्देश्यों के लिए प्रयुक्त होता है, इसलिए आइये अब एक अन्य उदाहरण पढ़ते हैं। इस की ऑडियो क्लिप नहीं है, यह साधारण पठंत [कविता पाठ] के अनुसार है। यदि आप लोगों ने कहा तो इस की ऑडियो क्लिप घोषणा पोस्ट के साथ प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।
ऊपर के उदाहरण पढ़/सुन कर नए लोग कहीं ये न समझने लगें कि यह छंद तो ईश-वन्दना जैसे उद्देश्यों के लिए प्रयुक्त होता है, इसलिए आइये अब एक अन्य उदाहरण पढ़ते हैं। इस की ऑडियो क्लिप नहीं है, यह साधारण पठंत [कविता पाठ] के अनुसार है। यदि आप लोगों ने कहा तो इस की ऑडियो क्लिप घोषणा पोस्ट के साथ प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।
[३] संसार उस के साथ है जिस को समय की फ़िक्र है
सदियों पुरानी सभ्यता को, बीस बार टटोलिए।
किसको मिली बैठे-बिठाये, क़ामयाबी, बोलिए।।
है वक़्त का यह ही तक़ाज़ा, ध्यान से सुन लीजिए।
मंज़िल खड़ी है सामने ही, हौसला तो कीजिए।१।
चींटी कभी आराम करती, आपने देखी कहीं।
कोशिश-ज़दा रहती हमेशा, हारती मकड़ी नहीं।।
सामान्य दिन का मामला हो, या कि फिर हो आपदा।
जलचर, गगनचर कर्म कर के, पेट भरते हैं सदा।२।
गुरुग्रंथ, गीता, बाइबिल, क़ुरआन, रामायण पढ़ी।
प्रारब्ध सबको मान्य है, पर - कर्म की महिमा बड़ी।
ऋगवेद की अनुपम ऋचाओं में इसी का ज़िक्र है।
संसार उस के साथ है, जिस को समय की फ़िक्र है।३।
[शब्द - नवीन सी. चतुर्वेदी]
तो ये थे गायन और पठंत शैली में हरिगीतिका छन्द के उदाहरण। जानकार लोग तो सब जानते ही हैं, परन्तु, नए लोगों के लिए उदाहरण देना ज़रूरी होता है। सिर्फ क़िताबी बातों से सीखना वाक़ई मुश्किल होता है, इसीलिये घनाक्षरी छन्द वाले आयोजन से मंच ने ऑडियो क्लिप्स का विकल्प भी अपनाना शुरू कर दिया है। आयोजन दर आयोजन नए लोग जुड़ते जा रहे हैं, यह बहुत ही हर्ष का विषय है। काश पुराने लोग भी इस साहित्य सेवा का सहभागी बनने के बारे में पुनर्विचार करें।
जल्द ही हम लोग फिर से मिलेंगे 'घोषणा पोस्ट' के साथ...........तब तक आनंद लीजिये इन छन्दों का और कमर कस लीजिये इस बार, पहले से बेहतर आयोजन को मूर्त रूप देने के लिए।
हालाँकि जिन लोगों के ई-मेल एड्रेस मंच के पास उपलब्ध हैं, उन सभी को मेल नोटिफिकेशन के साथ साथ ऑडियो क्लिप्स भी अटेच कर के भेजे गए हैं। फिर भी यदि किसी व्यक्ति को यहाँ ब्लॉग पर से इन audios को डाउनलोड करने या सुनने में दिक्क़त आ रही हो, तो वे कमेन्ट बॉक्स में अपने ई मेल पते के साथ इस बारे में लिख दें या ई मेल भेज कर सूचित कर दें।
जय माँ शारदे!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंराजेन्द्र भाई की अत्यंत मधुर आवाज़ में गणपति वन्दना तथा सरस्वती वन्दना के साथ आपने बहुत सुन्दर शुभारंभ किया है ! अनेकानेक शुभकामनायें एवं बधाइयाँ ! इस छंद को समझने के लिये कृत संकल्प हूँ ! धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंदोनों रचनाओं को मेल बाॅक्स से ही सुन लिया था। दोनों वंदना वंदनीय हैं।
जवाब देंहटाएंकवयित्री शुद्ध शब्द है, कवियत्री अशुद्ध है कृपया ठीक कर लें,
जवाब देंहटाएंमान्यवर प्रणाम। भूल सुधार की तरफ ध्यान दिलाने के लिए शुक्रिया। सुधार कर दिया है। आप जैसे मनीषियों से भविष्य में भी इसी तरह के सहयोग और इस मंच पर प्रस्तुति देने वाले रचनाधर्मियों के उत्साह वर्धन की अपेक्षा है।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ज्ञानवर्धक पोस्ट .. गणपति वंदना और सरस्वती वंदना तो सचमुच वन्दनीय है .. राजेन्द्र भाई की समुद्र जैसी धीर गहरी आवाज में वंदना बेहद अच्छी लगी... सादर
जवाब देंहटाएंशब्द-स्वर की अद्भुद जुगल बंदी
जवाब देंहटाएंअद्भुत
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